Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 308
________________ जैनशासन रसना तकलीने बल खाया, सो अब कैसे खर्ट । सबद-सूत सूधा नहिं निकसे, घड़ी घड़ी फल टूटे ।। २ ।। आयु-मालका नहीं भरोसा, अंग चलाचल सारे। रोग इलाज मरम्मत चाह, वेद बाढई हारे ।। ३ ।। नया चरखला रंगा-चंगा, सबका चित्त चुराच । पलट दरन गए गुन अगले, अब देखे नहि भावे ।। ४ ।। मोटा महीं कातकर भाई, कर अपना सुरझेरा। अन्त आगमे ईधन होगा, 'भूधर' समझ सबेरा ।। ५॥" X उनका यह पद भी कितना प्रबोधक है, जिस में कविघर प्रभुको भक्ति के लिए प्रेरणा करते है "भगवन्त भजन क्यों भूला रे; यह संसार रैनका सुजन धन पारि बरला मात ॥ इस जोवन का कौन भरोसा, पावक में तृण पूला रे । काल कुदार लिए सिर ठाड़ा, क्या समझे मन फूला रे ॥ २ ॥ स्वारथ साधं पांच पांव तू, परमारथको लूला रे।। कहुँ कैसे सुख पैहे प्राणी, काम करे दुःखमूला रे ।। ३॥ मोह पिशाच छल्यो मति मार, निज कर कंध वसूला रे । भज श्रीराजमतीवर 'भूधर' दुरमति शिर धूला रे ॥ ४॥" X आत्माको सवार मानकर उसे सावधान करते हुए कहते हैं. शरीररूपी घोड़ा महा पुष्ट है, इसे सम्हालकर रखो, अन्यथा यह धोखा देगा । विनमविषयी कहते है "घोरा झूठा है रे, मत भूले असवारा । तोहि मुधा ये लागते प्यारा, अन्य होयगा न्यारा | घोरा झूठा चरै चीज अरु पुरै कैदसों, ऊबट चले अटारा । जीन कसे तय सोया चाहै खानेकी होशियारा ॥ २ ॥ खुब खजाना खरच खिलाओ, यो सब न्यामत चारा। असवारीका अवसर आवे, गलिया होय गॅवारा ॥३॥ छिन् ताता छिनु प्यासा होवे, सेव करावन हारा । दौर दूर जंगल में हार, सूरै धनी विचारा ॥ ४ ॥

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