Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 242
________________ २३४ जैनशासन इस विवेचनसे यह स्पष्ट हो जाता है, कि जिस प्रकार पारसी, ईसाई आदि धर्म वैदिकधर्म-जिसे हिन्दूव कहा जाता है- से पृथक् हैं, उसी प्रकार जैन और बौद्ध भी परमार्थतः हिन्दूधर्म नहीं कहे जा सकते। सिंधु नदी से सिंधु समुद्र पर्यन्त जिसको भूमिका है, वह हिन्दुस्थान है, और उसमें जिनके तीर्थस्थान हैं, अथवा जिनकी बहु पितृ-भू है, उसे हिन्दू कहना चाहिए, ऐसी परिभाषा भी निराधार हूँ एवं सदोष भी । खोजा लोगों की पुण्यभूमि भारत है। उनके धर्मगुरु आगाखान भारतीय हैं । परमा कोहि होना, किन्तु यह प्रगट है, कि वे मुसलिमघर्मो होनेसे अहिन्दू माने जाते हैं। इसी प्रकार रोमन कैथलिक ईसाइयोंके पूज्ब गृह सेण्ट जेवियरका निधन बंबईके समीप गोवामें हुआ था, अतः वन स्थल उनका तीर्थस्थान बन गया है; इससे परिभाषाको दृष्टिसे उनकी परिगणना हिन्दुओं में होनी थी, न कि अहिन्द्र ईसाइयों में ऐसा नहीं होता अतः परिभाषा अतिव्याप्ति दूषणयुक्त है । हिन्दुस्तान के अंग काश्मीर में परिभाषा नहीं जाती है, अतः वह अव्याप्त दूषण दूषित होनेके कारण घमंकी दृष्टिसे जैन तथा बौद्धों को हिन्दु मानने के पक्षको प्रबल प्रमाणसे सिद्ध नहीं कर सकती है । ऐसी स्थिति में जैनधर्मका स्वतन्त्र अस्तित्व अंगीकार करना न्याय तथा मत्यकी मर्यादा के अनुकूल है । जनधर्मका साहित्य मौलिक है। इसकी भाषा भी स्वतंत्र है। इसका कानून भी हिन्दू कानूनसे पृथक् है । ऐसी भिन्नताकी सामग्रीको ध्यान में न रक्ष कोईकोई इसे 'आर्यधर्मको शाखा बताने में अपनेको कृतार्थ मानते हैं । महास हाईकोर्ट के स्थानापन्न प्रधान विश्वारपति श्रीकुमारस्वामी शास्त्रीने हिन्दूचलम्बी होते हुए भी सत्यानुरोघसे यह लिखा है - "आधुनिक शोधने यह प्रमाणित "Buddhism and Jainism were certainly not Hinduism or even the Vedic Dharma, yet they arose in India and were integral parts of Indian life, culture and philosophy. A Budd hism or Jain in India is a hundred percent product of Indian throught and culture yet. neither is a Hindu by faith" -ibid P. 73. 1. "Were the matters res integra i would be in clined to hold that modern research has shown that Jains are not Hindu dissenters but that Jainism has an origin and history long anterior to the Smritis and commentaries, which are recognised authorities on Hindu law, usage... In fact Jainism rejects the authority of the Vedas, which form the bedrock of Hin

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