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जैनशासन
कविवर वृन्दावन, मनरंगलाल, बख्तावर, रामचन्द्र आदिने चौबीस तीर्थकरोंको पूजा तारा पवित्र भक्तिका प्रदर्शन किया है । भगवान् चंद्रप्रभ अष्टम तीर्थकरको वैराग्य प्राप्त हुआ है। वे अब मुनिपद स्वीकार कर रहे हैं। उन्हें मुनि अवस्थामें चन्द्रपुरीमें महाराज पन्द्रदत्तने दुग्ध का आहार कराया था। भगवान स्फटिककी शिलापर विराजमान हो तपोवनमें श्रेष्ठ ध्यानमें निमग्न हो गये थे। भगवानका शारीर समन्तभद्राचार्य ने 'चन्द्रमरीचिगौरम्' कहा है। इस शुभ्रताको सुचित करनेवाली साधन-सामग्री में कवि वृन्दावनजीको कितनी मनोहर कल्पनाकी प्रेरणा प्रदान की, यह सहृदय भक्तजन विचार सकते हैं। कवि कहते है"लखि कारण ह्वे जगते उदास । चिन्त्यो अत्तुप्रेक्षा सुख निवास ॥४॥ तित लोकान्तिक बोध्यो नियोग 1 हरि शिविका सजि धरिपो अभोग । सापें तुम चढ़ि जिन चन्दराय । ता छिनकी शोभा को कहाय ॥५॥ जिन अंग सेत, सित चमर ढार | सित छत्र शीस गल गलकहार । सित रतन जड़ित भूषण विचित्र । सित चन्द्र चरण चरचे पवित्र ।।६।। सित तन-द्युति नाकाधीश आप। सित शिविका कांधे धरि सुचाप ।। सित सुजस सुरेश नरेश सर्व । सित चितमें चिन्तन जात पर्व ।।७।। सित चन्द्रनगर ते निकसि नाथ । सित बन में पहंचे सकल साथ। सित शिलाशिरोमणि स्वच्छ छांह । सित तप तित धारयो तुम जिनाह॥८॥ सित पयको पारण परम सार । सित चन्द्रदत्त दीनो उदार। सित करमें सो पय धार देत । मानो बांधत भव-सिन्धु संत ॥९॥ मानों सुपुण्य धारा प्रतच्छ । तित अचरज पन सुर किय ततच्छ । फिर जाय गहन सित तप करन्त । सित केवल ज्योति जग्यो अनन्त । १०"।
-वृन्दावन चौबीसी पूजा | भगवान् शान्तिनायका स्तवन करते हुए कविकुर डामणि स्वामी समन्तभद शान्तिका लाभ कर यान्तिके नाय बनने का मार्ग बताते हैं"स्वदोषशान्त्या विहितात्मशान्तिः शान्तविधाता शरणं गतानाम् । भूयाद् भवक्लेशभयोपशान्त्य शान्तिजिनो मे भगवान् शरण्यः 1३"
-१० स्वयंभू ८० | "वे शान्तिनाथ भगवान मेरे लिये शरण है, जिन्होंने अपनी आरमामें विद्यमान दोषोंका ध्वंस करके आत्म-शान्ति प्राप्त की है, जो शरणमें माने वाले जीवोंको शान्ति प्रदान करते हैं। वे शान्तिनाथ भगवान् संसारके संकट तथा भौतिको उपशान्ति करें।"