Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 240
________________ २३२ जैनशासन छ। जिमर जैनधर्मको pre-Aryan--अग्र्योका पूर्ववती धर्म कहते हैं, ।। {philosophics of India P. 60) ऋग्वेद में १५ वामन अवतारका वर्णन है । वाषभदेव नवमें अवतार माने गये है। अतः ऋग्वेदको रचनाके बहुत पहिले जैनधर्मके संस्थापक ऋषभदेवका सद्भान ज्ञात होता है। अतः जैनधर्म प्राग्वैदिक सिद्ध होता है। फरलांग साहब इस परिणामपर पहुंचते हैं कि 'जैनधर्म के प्रारंभको जानना असंभव है।" इससे यह भ्रम भी दूर हो जाता है कि जैनधर्म हिन्दू धर्मको बुराइयों को दूर करने के लिए संशोषित Fri praitri. सप २६ मा जापाई मौलिक और स्वतंत्र है। डा० ए० गिरनाटने लिम्बा है: “जैनधर्ममें मनुष्यको उन्नति के लिए सदाचारको अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है। जैनधर्म अधिक मौलिक, स्वतन्त्र तथा सुव्यवस्थित है । प्राह्मण धर्मकी अपेक्षा यह अधिक सरल, सम्पन्न एवं विविधतापूर्ण है और यह बौद्धधर्म के समान शून्य वादी नहीं है।' हिन्दूधर्मका स्वरूप समझनेसे जैनधर्मको स्वतन्त्रताका भाव अनायास हृदयंगम किया जा सकता है। हिन्दूधर्मके प्रकाण्ड विद्वान् डा. राधाकटानका कथन है कि "वेद हिन्दूधर्मका मूलाधार है । हिन्दू यह है, जिसने वेदके आधारपर भारतमें विकास प्राप्त किसी भी धर्म परंपसको अपने जीवन एवं आचरण में अपनाया हो ।'" लोकमान्य तिलफने लिखा है कि "जिसको बुद्धि वेदको प्रमाण 3. 'It is impossible to find the beginning of Jainism'. २, Tirthamkara Mahavira : Life & philosophy by S. C. Diwakar p. 63-65. . "There is very great ethical value in Jainism for man's improvement. Jainism is very original, independent and systematic doctrine. It is niore simple, rnore rich and varied than Brahmanical systems and not negative like Buddhism." Dr, A, Guiernot. ४. "The Veda is the basis of Hindu religion, A Hindu......is one wlio adopts in his life and conduct any of the religious traditions developed in India on the basis of the Vedas" "Religion and Society by Dr. Radhakrishuars-pp. 109-137. ५. 'प्रामापबुद्धिवेदेषु मावनानामकता । उपास्यानामनियमः एतद्धर्मस्व लक्षणम् ।।"

Loading...

Page Navigation
1 ... 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339