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जैनशासन छ। जिमर जैनधर्मको pre-Aryan--अग्र्योका पूर्ववती धर्म कहते हैं, ।। {philosophics of India P. 60) ऋग्वेद में १५ वामन अवतारका वर्णन है । वाषभदेव नवमें अवतार माने गये है। अतः ऋग्वेदको रचनाके बहुत पहिले जैनधर्मके संस्थापक ऋषभदेवका सद्भान ज्ञात होता है। अतः जैनधर्म प्राग्वैदिक सिद्ध होता है।
फरलांग साहब इस परिणामपर पहुंचते हैं कि 'जैनधर्म के प्रारंभको जानना असंभव है।"
इससे यह भ्रम भी दूर हो जाता है कि जैनधर्म हिन्दू धर्मको बुराइयों को दूर करने के लिए संशोषित Fri praitri. सप २६ मा जापाई मौलिक और स्वतंत्र है। डा० ए० गिरनाटने लिम्बा है: “जैनधर्ममें मनुष्यको उन्नति के लिए सदाचारको अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है। जैनधर्म अधिक मौलिक, स्वतन्त्र तथा सुव्यवस्थित है । प्राह्मण धर्मकी अपेक्षा यह अधिक सरल, सम्पन्न एवं विविधतापूर्ण है और यह बौद्धधर्म के समान शून्य वादी नहीं है।'
हिन्दूधर्मका स्वरूप समझनेसे जैनधर्मको स्वतन्त्रताका भाव अनायास हृदयंगम किया जा सकता है। हिन्दूधर्मके प्रकाण्ड विद्वान् डा. राधाकटानका कथन है कि "वेद हिन्दूधर्मका मूलाधार है । हिन्दू यह है, जिसने वेदके आधारपर भारतमें विकास प्राप्त किसी भी धर्म परंपसको अपने जीवन एवं आचरण में अपनाया हो ।'" लोकमान्य तिलफने लिखा है कि "जिसको बुद्धि वेदको प्रमाण
3. 'It is impossible to find the beginning of Jainism'. २, Tirthamkara Mahavira : Life & philosophy by S. C. Diwakar
p. 63-65. . "There is very great ethical value in Jainism for man's
improvement. Jainism is very original, independent and systematic doctrine. It is niore simple, rnore rich and varied than Brahmanical systems and not negative like Buddhism."
Dr, A, Guiernot. ४. "The Veda is the basis of Hindu religion, A Hindu......is
one wlio adopts in his life and conduct any of the religious traditions developed in India on the basis of the Vedas"
"Religion and Society by Dr. Radhakrishuars-pp. 109-137. ५. 'प्रामापबुद्धिवेदेषु मावनानामकता ।
उपास्यानामनियमः एतद्धर्मस्व लक्षणम् ।।"