Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 251
________________ पराक्रमके प्रांगणमें कार करनेको मले बाध्य किया है। मुझे इस बातको अस्वीकार करनेका कोई कारण नहीं दिखता कि हम क्यों न जनमान्यताको स्वीकार करें कि चंद्रगुप्तने अपने राज्यकालके अन्त में जैनधर्म को स्वीकार किया था, तथा राज्यका परित्याग करके जैनमनिके रूपमें प्राणपरित्याग किये ? इस बात को स्वीकार करने वालों में केवल मैं ही नहीं हूँ। राइस साहब ने, जिन्होंने श्रवणबेलगोलावे जैन शिलालेखोंका भलीभांति अध्ययन किया है, इस बात के समर्थन में अपना निर्णय दिया है, अंतमें स्मिय महार भी इसी और को है।" शादिलिप रायबहादुर श्रीनरसिंहाचार्यका अभिमत' है कि-''चंद्रगुप्त एक सच्चे कोर थे और उन्होंने जैन शास्त्रानुसार सल्लेखनाकर चंद्रगिरि पर्वतसे स्वर्ग लाभ किया।" वे यह भी लिखते है कि श्रवणबेलगोलाके चंद्रवस्ती नामले पंद्रगिरिपर अवस्थित मंदिरको दोघालोंमें सम्राट चंद्रगुप्त के जीवनको अंकित करनेवाले चित्र है। एफ० हबल्यू० टामसने भी यह लिखा है कि चंद्रगुप्त श्रमणोंके भक्तिपूर्ण शिक्षणको स्वीकार करता था जो ब्राह्मणों के सिद्धांतों के प्रतिकूल है। जैनधर्मविद्वेषो वने जैसे जैन देवस्थान, शास्त्रम पहार, जैनम तथा जैन जनताके विनाशका निर्मम क्रूर कार्य किया, उसी प्रकार उन्होंने जैन महापुरुषके चरित्रपर कालिमा लगाने में कमी नहीं की । 'प्रतापी सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य जैनधर्मके आराधक थे, वे क्षत्रिय कुलके शिरोमणि थे और उन्होंने अपने जीवनका अन्त दिगम्बर जैन मुनिके रूप में व्यतीत किया था ।' यह बात प्राचीन प्राकृतिके शास्त्र 'तिलोयपाति से भी समर्पित होतो है.... "मउडधरेसु चरिमो जिणदिक्खं धरदि चंदगुत्तो य । तत्तो मउडधरा दुप्पयज्ज गेव गिण्हंति ।।" ४११४८१ । मुकुटधर राजाबोंमें अंतिम चन्द्रगुप्त नामके नरेशने जिनेन्द्र दीक्षा धारण की इसके पश्चात् मुकुटधारी नरेश प्रजज्याको नहीं धारण करते हैं। १. The hill which contains the foot-prints of his (Chandragupta's) preceptor is called Chandra Giri after his name & on it stands a magnificient temple called Chandra Basti with its carved and decorated walls, portraying scenes from the life of the great Emperor. He was a true hero and attained the heaven from that hill in the Jain manner of Saltekhana. R. "The testimony of Megasthenes would likewise seem to imply that Charidragupta submitted to the devotional teachings of Sramanas as opposed to the doctrines of the Bra]}mins "Vide P. 23. Jainism or Early Faith of Asoka. by F.W. Thomas.

Loading...

Page Navigation
1 ... 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339