Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 272
________________ २६४ जैनशासन ज्योतिष तथा अन्य ज्ञान के विषयों में इतनी प्रवीणता प्राप्त की है, कि इस विषय में उनके शत्रु मी उनका सम्मान करते हैं । उनके कुछ शास्त्र तो यूरोपीय विज्ञानके लिए अब भी महत्त्वपूर्ण है। जैन साधुओं द्वारा निर्मित नौंव पर तामिल, तेलग तथा कन्नड़ साहित्यिक भाषाओंकी अवस्थिति है। प्राकृत विमर्श विचक्षण राब. नरसिंहाचार्य एम. ए. अपने 'कर्णाटककविचरिते' ग्रन्थमें लिखते हैं-'कन्नड़-भाषाके प्रपद्य कवि जैन हैं। अब तक उपलब्ध प्राचीन और उत्कृष्ट रचनाओंका श्रेय जैनियों को है।' कन्नड़ साहित्य के एक मर्मज दिद्वान् लिखते हैं-“कन्नड़ भाषाके उच्च कोटि के साठ कवियों में पचास कवि जैन हुए हैं । इनमें से चालीस कवियों के समक्ष कवि इतर संप्रदायोंमें उपलब्ध नहीं होने ।" कविरत्नत्रयके नाम से विख्यात जैन रामायणकार महा कवि पंप, शान्तिनाथ पुराणके रचयिता महाकवि पुन्न एवं अजितनाथपुराणके रचयिता कविवर रन्न जैन ही हुए हैं। महाकवि पंप तो कन्नड़ प्रान्त में इतनो अधिक सार्वजनिक वंदनाको प्राप्त करते हैं, जितनी कि अन्य भाषाओंक श्रेष्ठ कवियों को भी प्राप्त नहीं होती। जिनका संपर्क कटिक आदि प्रान्तीय साहिस्थिकों के साथ हुवा हो वे आनते हैं, कि अष्ठ जेन रचनाकारोंक प्रसादसे जैनेत र बन्धु भो जैन तरवज्ञानके गंभीर एवं महत्वपूर्ण तत्त्वसे भी परिचित तथा प्रभावित रहते है । अध्यापक श्री रामास्वामी आयगर का कथन है कि तामिल साहित्यको जो जैन विद्वानोंकी दन है, वह तामिल भाषियोंके लिये अत्यम्स मूल्यवान् निधि है। तामिल भाषामें जो संस्कृत भाषाके बहवसे शब्द पाये जाते है, यह काम जैनियों द्वारा सम्पन्न किया गया था। उन्होंने ग्रहण किये गये संस्कृत भाषाके शब्दोंमें ऐसा परिवर्तन किया, कि व तामिल भाषाकी ध्वनिपत नियमोंके अनुरूप हो जायें। । कानड़ साहित्य भी जैनियोंका अधिक ऋणी है । वास्तविक बात तो यह है, कि वे उस भाषाके जनक है। कन्नड़ भाषा विषयमें श्री राइसका कथन विशेष 1. "The Jain coatribution to Tamil literature for the most precious possessions of the Tamilians. The largest portion of the Sanskrit derivjations found in the Tamil language was introduced by the Juins. They altered the Sanskrit, which they borrowed in order to bring it in accordance with Tamil euphonic rules. The Kanarese literature also owes a great deal of the Jains. In fact they were the originators of it."

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