Book Title: Jain Shasan
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 261
________________ पराक्रमके प्रांगण में २५३ चारों के कारण जनधार पल्लव नकि यहा कि विपत्तिसे आक्रान्त हुआ। जैनधर्मके परम विद्वेषी संबंधर के प्रयत्नसे जैनोंके हिन्दुओं द्वारा संहारके चित्र मदुराक पीनाक्षो मन्दिरके स्वर्णकमल युक्त सरोवरके मंडपकी दीवालमें सुरक्षित रखे गए । 'इतने मासे संतुष्ट न होने के कारण ही मानो उस दुर्घटनाका अभिनय वर्ष में होनेवाले द्वादश उत्सवों में से पांच उत्सदोंमें किया जाता है । बसवराजके नेतस्थमें लिंगायतोंने कलचूर्य राज्यसे जैनियों का १२वीं सदीके अंत में महार किया। तिरुज्ञान संबंधर के समय में परस्वामी एक और शव साने जैनधर्मके संहार कराने में अग्निमें घताहतिका कार्य किया । 'अप्परस्वामीके बारे में कहा जाता है, कि वह पहले जैन था, पश्चात् एक विशेष घटनासे अप्परस्वामी ने शंवधर्म अंगीकार कर लिया । इस कार्य में उनकी बहिन की बड़ी सत्परता रही। अप्परस्वामी के पेट में एक बार बड़ी पीड़ा उठी, अप्परस्वामीने शिव मंदिरमे पहुँचकर भक्ति की, इससे पेटकी पीड़ा दूर हो गई, मोर वह कट्टर शंद हो गया। सांप्रदायिकोंने यह प्रयत्न किया कि उनलोगोंकी जैन हिसिनी नीतिपर आवरण पड़ जाय, और उस्टा जैनियोंको उनके हिसन के लिए प्रयत्नशील रहनेका दोषी बनाया जाय, किन्तु मदुराके मीनाक्षी मन्दिरकी जैन संहारकी चित्रावली, संहारस्मृति उत्सव मनाना तथा "परिम्पपुराणम् "में जैनधर्मके प्रति विषपूर्ण उद्गार प्रोफेसर आयंगरके इस कथन को पूर्णतया सत्य प्रमाणित करते है कि इनके निमित्तसे जो संहारका कार्य हुभा है यह ऐसा भयंकर है, कि उसकी तुलनाकी सामग्री दक्षिण भारत में कहीं भी नहीं मिलेगी। आज जनधर्म आराधक थोड़ी संख्या रह गए और अन्य धर्मपालकोंकी जन गणनामें असाधारण अभिवृद्धि हुई । यदि बारमविकास और अभ्युदयके तत्व जैनधर्म के शिक्षण में न होते तो देशके ह्रास और विकासके साथ अनुपात सम्बन्ध अथवा अन्वय व्यतिरेकभाच नहीं पाया जाता। जिस जैनशासनमें ईश्वरको दासताको भी स्वीकार न कर बौद्धिक और आस्मिक स्वाधीनताका चित्र विश्व के t. As though this were not sufficient to humiliate that unfortu tiate race, the whole tragedy is enacted at five of the twelve annual festivals at the Madura temple : p. 167. 8. At the close of the 12th cen. the Lingayatas under the ledership of Basava persecuted the Jains in the Kalachurya dominion. P.26. ३. देखो-'साप्ताहिक भारत"-पेज ६, १० नवम्बर स. ४७-अप्पर स्वामीपर लेख ।

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