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जैनशागन बौद्ध साहित्य में उसका अन्य अर्थमें (Metaphorically) प्रयोग हुआ है, अतः मूल अर्थका प्रयोग करनेवाला जैनधर्म बौद्धधर्मकी अपेक्षा विशेष प्राचीन है। ___उto जैकोबाकी जनधमकी प्राचीन प्रमाणित कर उसे बौद्धधर्मसे भिन्न सिख करने वाली युक्तिनों में ये मुख्य है
परातन बौद्ध साहित्यमें जैनधर्म सम्बन्धी मान्यतामों आदिका उल्लेख पाया जाता है । श्रीघनिकायके ब्रह्मजाल सुतकी टीका 'जलकाय' जीवोंका वर्णन है। उसमें आजोवक संप्रदायकी अात्मामें वर्ण मानने वाली मान्यताका निराकरण किया गया है । सामन्य फलसुत्त पाश्च नायके नियम चतुष्टयका वर्णन है । मजिसमनिकाय में महावीरक आराधक उपाली नामक श्रावकका बौद्धधर्मी बनने का उल्लेख है । उसमें जन धर्म सम्बन्धी मान्यता मन, वचन, कायको दण्डित करनेका वर्णन है । अंतरनिकायम राजकुमार अभय इस जन मान्यताका उल्लेख करता है कि तपश्चर्या कर्मोका नाश होता है और आत्मा पूर्ण ज्ञानको प्राप्त करता है । उसमें दिखप्त और उपाराथ (Oposatha) नामक जैन व तोंका भी उल्लेख है । महावगामें सिंह सेनापति महावीरका पक्ष छोड़कर बोधर्म अंगीकार करता हुआ बताया गया है।
दौशास्त्रों में निग्रन्थों-जैनोंका दोद्धोंके प्रतिद्वन्दीके रूप में वर्णन आता है और उनमें कहीं भी यह नहीं लिखा है कि जैनधर्म एक नवीन धर्म है । दूसरी बातममखलि गोबालके द्वारा परिगणित धमौके पभेदोंमें निग्रन्थों की तीसरे सम्बरम गणनाको गई है। नवीन धर्मको इस प्रकार गणनाका महत्त्व नहीं प्राप्त होता। निग्रंन्ध पिताकी अनिय सन्तान 'सच्चचक' (Sachchaka) का युद्धसे विवाद हुआ था। इससे जैनधर्म बौद्धधर्मका भेद है यह बात खंडित होती है।
डा. जकोबीका यह भी कथन है कि जैन ग्रन्थों में विद्यमान साक्षियों और परम्पराश्रीको उपेसा करनेके लिए उचित साधनसामग्रीका अभाव है। उनमें जैनधर्मकी प्राचीनताका अनेक स्पलोंपर उल्लेख विद्यमान है। ___ जैनतत्वज्ञानके आधारपर भी जनों की प्राचीनता प्रमाणित होती है । जैनदर्शन में 'जोयों का वर्णन अन्य दर्शन की अपेक्षा जुदा हूँ | जन तत्त्वोंकी गणना करते समय 'गुण'को पपक पदार्थ नहीं बताया है। प्रज्योंमें धर्म और अधर्म द्रव्यों का उल्लेख किया गया है। इससे जोत्री इस निर्णयपर पहुँचते है कि इंडोआर्यन इतिहासके अत्यन्त प्रारंभ कालम जैनधर्मका उद्भव हुआ था ।' 1. Vide:-Introduction Out lines of Jainistn.' •p. XXX to
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