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साधक पर्व
'लिलोयपपत्तिमें बताया है कि जिस कालमें जीव कैवल्य, दीक्षा कल्याणक, मणि आदिसे पापरूपी मलको नष्ट करता है. वह काल मंगल कहा है ।
"एवं अणेयभेयं हवदितं कालमंगल पवर।
जिणमहिमा संबंधं पं दीसरदीपपहुदीदों ॥-१६२६ 1 इस प्रकार जिनेन्द्र भगवान्की महिमासे सम्बन्ध रखनेवाला वह श्रेष्ठ काल HT कहा है, जैसे नन्दीश्वरद्वीप पर्व शादि ।।
साधक मंगल कार्यों द्वारा विशेष अवमरकी स्मृतिको सफल बनाता है। भाचायं गुणभद्र ने मनुष्य के शरीरको घुनके द्वारा भक्षित के साथ तुलना की है। इसमें जो गांठें होती हैं, उनको पर्व बहने हैं। गांठोंको न खाकर यदि
संग मिमें लगा देते हैं, तो अच्छी फसल आती है। इसी प्रकार जीवनमें नदीश्वर, दशलक्षण पर्वके कालको भोगने न लगाकर संयम तथा आत्मसाधनाम गीन करे, तो साधक मंगलमय जीनमवार अभ्युदय एवं निश्रेयस निर्वाणकी पिठाको प्राप्त करता है।
जन पनि प्रावण कृष्णा प्रतिगवाका प्रभात अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है. कारण उस दिन भगवान महावीर प्रभुने विपूलाचल पर्वतपर शांति और पगचिका जीयनप्रद उपदेश दिया था 3 वर्धमान हिमाचल से स्यादाद गंगाका मसतरण इस मंगलमय अवसर पर हुआ था, अतएव उस महान् शुद्ध एवं गायक स्मृतिका उद्बोधक होने के कारण वह्न 'चीरशासन दिवस' साधकके लिये
का अभिवंदनीय है। यदि भगवान्ने अपना सार्वजनीन अनेकान्तमय अभय जपा ने दिया होता, तो संसार मोहान्धकारमें निमग्न रहकर अपथगामी हता।
। 'जस्मि काले केवलणाणादिमंगलं परिणमति ॥१.२४॥"
"परिणिक्कमणं केवलणाणुभवणिबुदिपवेसादी।
पावमलगालणादों पप्णत्तो कालमंगलं एवं ।। १-२५ ।।" ५. "गानुष्यं चुणभक्षितं सदृशम् ।"-आत्मानुशासन, ८१ । . प्रत्यक्षीकृतविश्वाघ कृतदोपत्र यक्षयम् । जिनेन्द्र गौतमोऽपच्छतीयं पापनाशनम् ॥ ८१ ।। म दिन्यध्वनिना विश्वसंशयच्छेदिता जिनः । पन्दुभिध्वनिधीरेण योजनान्तरयायिना ।। ९ ।। पावणस्यासिने पक्षे नक्षत्रेऽभिजिप्ति प्रभुः ।। प्रतिपय हि पूर्वाह्न शासनार्थमुदाहरत् ।। ९१ ॥"
-हरिवंशपुराण सर्ग २।