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जैनशासन
पूर्व राजपूतानामें जैनधर्मका प्रचार था। दिल्ली के अशोक स्तम्भ में जैनधर्मका 'निगांठ' शब्द द्वारा उल्लेख किया गया है। प्रति एम लेखमें बताया है कि सम्राट अशोकने अन्य सम्प्रदायोंके अनुसार नियन्य ( निगन्ध ) पंथ के लिए 'धर्ममहामात्य की नियुक्ति की यह लेख सब मन्ने २५ वर्ष अर्थात् आज २२२१ वर्ष पूर्व जैनधर्मको महत्वपूर्ण स्थितिको सुचित करता है । यदि वह महत्वपूर्ण अवस्था में न होता, तो उसके लिए सम्राट अशोक विशिष्ट मन्त्रीकी नियुक्ति क्यों करता ?
"रेवेरेण्ड ले स्टेसन अध्यक्ष रावल एशियाटिक सोसाइटी इस निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि दि० जैन सम्प्रदाय प्राचीन समय से अबतक पाया जाता है। ग्रीक लोगोंने पश्चिमी भारतमें जिन 'जिमनोसोफिस्टो' का वर्णन किया है व जैन लोग थे। ये तो बौद्ध थे और न ब्राह्मण थे। सिकन्दरले दिगम्बर जैन समुदाय को तक्षशिला में देना था, उनमें से कालोनस या नामक दिन महात्मा फारस तक उनके साथ गये थे। इस युग में यह धर्म २४ तीर्थकरों द्वारा निपित किया गया, उनमें महावीर अंतिम हैं ।
मथुरा के कंकालोटोले में महत्त्वपूर्ण जैन पुरातत्वकी सामग्री के सिवाय ११० जैन शिलालेख मिले हैं। जो प्रायः कुशानवंशी राजाओं के समय के हैं । ि महाराव उन्हें प्रथम तथा द्वितीय शताब्दीका मानते हैं। एक खड्गासन जनमूर्तिपर लिखा है वह भर ( अरहनाथ) तीर्थकर की प्रतिमा संवत् ७८ में देवों द्वारा मिति इस स्तूपको सीमा के भीतर स्थापित की गई ।"
इस स्तूपके विषय में फुहरर साहब लिखते है-"यह स्तूप इतदा प्राचीन है, कि इस लेख की रचनाचे समय स्तूप आदिका वृत्तान्त विस्मृत हो गया होगा । लिपिकी दृष्टि से यह लेख इण्डोसिथियन संवत् (शक ) अर्थात् सन् १५० स्त्रीका निश्चित होता है । इसलिए ईसवी सन्से अनेक शताब्दी पूर्व यह स्तूप बनाया
2. "As a sect the Digambaras have continued to exist among them from the old down to the present day; the only concl usion that is left to us that the Gymnosuphist, whom the Greeks found in Western India where Digambarism still prevails, were Jains and neither Brahmans or Buddhists and that it was a company of Digambaras of this sect that Alexander fell in with near Texila, one of them Calanus followed him to Persia. The creed has been preached by 24 Tirthankaras in the present cyele, Lord Mahavira being the
Jast.