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आत्मजागृतिके साधन-तीर्थस्थल १८९ ग. कृष्णा एम. ए., पो एच० ० लिखते हैं-"शिल्पीने जनप्रर्भके सम्पूर्ण त्यागकी भावना अपनी छनोसे इस मूतिके अंग-अंगमें पूर्णतया भर दी है। मूर्तिकी नग्नता जैनधर्मके सर्वस्व त्यागकी भावना का प्रतीक है । एकदम सीधे और उन्नत मस्तक युक्त प्रतिमा का अंगविन्यास आत्मनिग्रहको सूचित करता है। होठोंको दबा-मयी मुद्रासे स्वानुभूत आनन्द और दुखी दुनियाके साथ सहानुभूतिकी भावना व्यक्त होती है।" ___ 'Picturesquc Mysore'' नामक पुस्तकमें मूतिके विषयमें लिखा हैएक विशाल पाषाणको काटकर मूर्ति बनाई गई है। अज्ञात शिल्पीके हाथसे उस पाषाणके रूक्षस्तरमेंसे शान्त और विम्य स्मित अंकित सापकी मनोज्ञ मूर्ति निर्मित हुई। इस महान कार्य में कितना श्रम लगा होगा, यह बात दर्शकको आश्चर्यमें डाल दगी और वह इस बातको जानने को उलझनमें फंस जाएगा कि क्या यह मूर्ति इस पर्वतकी रही है अथवा वह जहाँ अभी अवस्थित है, यहाँ बाहरसे लाई गई है। नहीं कह सकते कि, चट्ठान वहां लपलम्घ हुई अथवा लाई गई। फरग्यूसन नामक विख्यात शिल्प-शास्त्रीका कथन है--"इजिप्तके बाहर कहीं भी इतनी विशाल सी. अन्य मति नहीं है। हादी देसी के ज्ञात नहीं है जो इस मूतिके द्वारा प्रदर्शित परिपूर्ण कला तथा ऊँचाईमें आगे बढ़ सके।" ___कहा जाता है कि गंगनरेशके पराक्रमी मन्त्री गोम्मटराय-चामुण्डरायके निमित्तसे उनके ईश्वर-गोम्मटेश्वरकी मूर्तिका निर्माण हुआ था । किन्तु जनश्रुति और परम्परागत कथानकसे इस मूर्तिका निर्माण इतिहासातीत कालका बताया जाता है । जिन बाहुबली स्वामोको यह मूर्ति है, के चक्रवर्ती सम्राट भरतके अनुज और भगवान् ऋषभदेवके प्रतापी पुत्र थे । पोदनपुरका वे शासन 1. “The image is cut out of a huge boulder and its rough sur
face has been made to yield by the hand of an unknown artist, an exquisite statue with the calm and beatific smile of a saint The visitor would be astonished at the amount of Jabour such a prodigious work must have entailed and would be puzzeled to know whether the statue was part of the hill itself or bad been moved to the spot where it now stands. Whether the rock was found in situ or was moved "nothing grandeur" says Fergusson, for more imposing exists any where out of Egypt and even there, no known statuc surpasses it in lacight or excels it in the perfection of art it exhibits." pr 23.