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जेनशासन
शत्रुञ्जय पर्वतपर तपश्चर्या की थी। दिगम्बरमुद्रा धारणकर कर्म-शत्रुओंपर भी विजय प्राप्त को घी । प्राकृत निर्वाणकाण्डमें लिखा है...
"पंडुसुआ तिणि जणा दविवरिंदाण अट्ठकोडोओ।
सत्तुंजयगिरिसिहरे णिच्वाणगया णमो तेति ॥ ६ ॥" भैया भगवतीदासजीने इसको इन शब्दोम स्पष्ट समझाया है"पांडव तीन द्रविड़ राजान ! आठ कोडि मुनि मुकति पयान। श्रीशत्रुजय गिरिके सोस। भाव सहित वंदो निसदोस ।।७."
पालीताणामें तीन हजारमें अधिक जन मन्दिर है, जिससे शत्रुजय क्षेत्रको मनोज्ञता बढ़ गई है । उस मन्दिरोंका नगर भी कहते हैं।
जिस स्थानपर विशेष प्रभावशाली मूर्ति, मंदिर आदि होते है, उसे अतिशय क्षेत्र कहते हैं । इनकी संख्या लगभग सोस अधिक है । किसो स्थानपर साधकोंको अथवा भक्तोंको विशेष लाभ दिखायी दिया, उसे अतिशय क्षेत्र कहते हैं । ऐसे अतिशय क्षेत्र नवीन भो बन जाते हैं।
जयपुर राज्यमें श्री महावीरजी नामक स्टेशन है । यहाँके भगवान् महावीरको मूर्तिका बड़ा प्रभाव सुना जाता है। हजारों यात्री वहां वंदनाको जाते हैं । मोना और गूजर नामक ग्रामीण लोग हजारोंको संख्यामें महावीर भगवान्की ऐसी भक्ति करते है, जो दर्शकोंको चकित करती है। जयपुर राज्य में शिवदासपुरा स्टेशनके समीप एक नवीन अतिशय क्षेत्रको उपलब्धि हुई है । उसे पद्मपुरो कहते हैं 1 __ मध्यप्रान्तमें दमोहसे २२ मीलकी दूरीपर कुण्डलपुर जैन क्षेत्र है। कहते हैं कि यवनराज औरंगजेबने वहाँ भगवान्की अतिशय मनोज्ञ पपासन १२ फीट ऊँची मूर्ति तुड़वानका प्रयत्न किया, किन्तु वहां की कुछ विशिष्ट घटनाओंने यवन सम्राट्को प्रकित कर दिया, इससे उस तीर्थसे उसकी वक्र दृष्टि दूर हो गई । पर्वत कुण्डलाकृति है । ६४ जिन मंदिरोंसे बड़ा रमणीय मालूम पड़ता है। भगवान्के मंदिर, जिसे बड़े बाबाका मन्दिर कहते हैं, के प्रवेश द्वारपर महाराज छत्रसालके समयका शिलालेख खुदा हुआ है । विक्रम संवत् १७५७ में मन्दिरका जीर्णोद्धार होकर जो महापूजा उत्सव हुआ था उसमें छत्रसाल महाराजने भी भाग लिया था । उनके द्वारा भेंटमें प्रदत्त एक बड़ा थाल मन्दिरके भण्डारमें था।
राजपूतानाम आबू पर्वतपर अवस्थित जैन मंदिर अपनी कलाके लिए विख्यात है। कर्नल टॉडने अपने राजस्थानमें लिखा है