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इस
चीनी
डाइरेक्टर श्रीनीभवन विश्व भारती एवं भारत स्थित चीनी सरकार के सांस्कृतिक प्रतिनिधिके महत्वपूर्ण उदगार विशेष मनन करने योग्य हैं, जो उन्होंने 'चीन-भारतीय संस्कृति में महिंसा' सम्बन्धी चिन्तनायुक्त निबन्ध में व्यक्त किये है। डा० सानका कथन है कि "अहिंसा भारतीय एवं चीनी संस्कृतिका सामान्य तथा प्रमुख अंग है । भारत में निषेधात्मक हिसाकी व्याख्या प्रचलित है और चीन में विधिरूप ।" गांधीजीने भारतीय दृष्टिकोणका स्पष्टीकरण करते हुए कहा था कि "इस देह में जीवन धारण करने में कुछ न कुछ हिंसा होती है। अतः श्रेष्ठ धर्मको परिभाषा में हिंसा न करना रूप निषेधात्मक अहिंसाको व्याख्या की गयी है ।" यह अहिंसाका उपदेश सबसे पहले विशेषतया जैन सोथंकरोंने गम्भीरता एवं सुव्यवस्थापूर्वक बतलाया और उचित रीति से प्रचारित किया। उनमें भी २४वें तीर्थंकर महावीर वर्षमान मुख्य हैं। पुनः इस अहिंसाका प्रचार बुद्धदेवने किया ।" जो लोग अंनधर्मको अहिंसाको अव्यवहार्य सोचते हैं, उनके परिज्ञानार्थ ४१० तानका यह कथन है, "मानवताका पर्याप्त विकास नहीं हो पाया है, इससे यह अव्यवहार्यं भले ही प्रतीत हो, किन्तु जब मानवताको विशेष उन्नति होगी तथा वह उन स्तरपर पहुँचेगी, तब अहिंसा विशेष व्रत सबको पालना होगा एवं सभी इसका पालन करेंगे ।" "चीन एवं भारतमें शुद्ध अहिंसा की भूमिकापर अवस्थित व्यापक संयुक्त संस्कृतिका निर्माण करने के उपरान्त हमें यह उचित होगा कि हम उसी
२.
जैनशासन
1. "Ahimsa is the chief characteristic of common Indian and chinese culture. Chinese prefer to use the positive form rather than the negative, while Indians prefer to use the negative one, Gandhijee said "All life in flesh exists by some violence ; hence the highest religion has been defined by a negative word "Ahimsa'..... The gospel of Ahimsa was first deeply and systematically expounded and properly and specially preached by the Jain Tirthamkaras, more prominently by the 24th Tirthamkara, the last one Mahavira Vardhamana. Then again by Lord Buddha......"
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..."Humanity has not yet progressed enough. When humanity has sufficiently developed and reached in certain higher stage, this law of Ahimsa should be and would be follwed by all. "