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आत्मजागृत्तिके साधन-तीर्थस्थल "प्रायों जिनजन्मादिस्थानं परमपावनम्। आश्रयेलो तु बोमाग दिना ॥ पस्थितो यदि तीर्थाय म्रियतेऽवान्तरे तदा । अस्त्येवाराधको यस्माद् भावना भवनाशिनी।३०॥"
-सागार धर्मामत, अ०८ । टम प्रसंगमें भतहार का यह कथन 'शुधि मनो यद्यस्ति तीर्थेन किम्' (२०५५)-यदि मन पवित्र हैं तो तार्थकी क्या आवश्यकता है ? विरोधी नहीं है। तीर्थ मानसिक पवित्रताका सामान है । तीथ वन्दना स्वयं साध्य नही । मानसिक निर्मलताका अंग है । जिनके पास वह दुर्लभ पवित्रता नहीं है, उनके लिये वह विशेष अवलम्बन रूप है । तीर्थवन्दना यदि भावोंको पवित्रताका रक्षण करते हुए न की गई तो उसे पर्यटन गिबाय वास्तविक नोर्थवन्दना नहीं कह सकते । जनता समक्ष तीर्थ नामसे ख्यात बद्तम स्थान है। उनमें सभी स्थल सम्यक्त दर्शन-ज्ञान-चारित्र समन्वित महान् योगाश्यरोंकी साधना द्वारा पवित्र नहीं है । जो रागी, दंपी, गुरुओं के जीवन में माबद्ध हैं, वं कुतीर्थ कह जा सकते हैं। उनकी वन्दना मिथ्यात्वकी अभिवृद्धि करेगा । इसलिय श्रेष्ठ अहियकोंके जीवन से पवित्र तोर्चामें अपन जीवनको परिमाजित बनाना विवेकी माधकका कर्तव्य है।
महान देव भगवान ऋषभवेधर्म कैलाश गवंतपर तपश्चर्या करके निर्वाण प्राप्त किया इसलिये सभी माधक उस कलामगिरिको प्रणाम करते हैं। उसे अष्टापद भी कहते है। बिहार प्रान्तक भागलपुर नगरका पुरासन कालमें चम्पापुर नाम था। वहाँस बारहवें तीर्थकर बाल ब्रह्मचारी मगवान् वासुपूज्यने निर्वाण प्राप्त किया था। मौराष्ट्र-गुजरातकी जूनागढ़ रियासतमें अवस्थित ऊर्जयन्त गिरिसे भगवान् नमिनाय प्रभुने मुक्ति प्राप्त की। इस गिरिको रैयतक पर्वत भी संस्कृत साहित्य में कहा गया है। हिन्दी में गिरनार पर्वत नाम प्रसिद्ध है। अतिशय उन्नत होनके कारण स्वामी समन्तभरने इसे 'मेघपटलपरिवोत्तट:' कहा है। और उसके आकार-विशेषको लक्ष्यमे रखते हुए 'भुवः कुबम्'-पृथ्वीरूपी वृषभका ककुद कहा है। घवला टीका १० ६७-१। इस पर्वतके समीपवर्ती नगरको 'गिरिणयर पट्टण' बताया है। पर्वतका नाम गिरिनगरसे गिरनार रूपमें कालक्रमसे परिवर्तित हुआ प्रतीत होता है। महाभारतके पुरुष धोकृष्णके चचेरे भाई भगवान नेमिनाथ बाईसा तीर्थकरकी तपश्चर्या और मुजिससे वह पर्वत पवित्र होने के कारण न केवल जनों द्वारा ही वन्दनीय है, बल्कि अन्य सम्प्रदायोंके द्वारा अपने हंगपर पूज्य बनाया जाकर तीर्य माना आने लगा है । प्रधानतया जैन संस्कृतिसे विशिष्ट सम्बन्ध होने के कारण यह अतिशय पवित्र जैन तीर्थ माना जाता है। जिन नेमिनाथ भगवान्की आत्म-जागरण, मायासे इस पर्वतका कण