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जैनशासन
है | ज्ञान और वैराग्यसम्पन्न व्यक्ति संसारके भोगों में तम्मय और आसक्त नहीं बनता है । राग, द्वेष, मोह आदिकी भयंकर लहरोंसे व्याप्त इस संसारसिन्धु में सुज्ञ साधक निमग्न न हो तोरस्य बनाकर विपतियोंसे बचता है । कारण—
"सीरस्थाः खलु जीवन्ति न तु रामान्धिगाहिनः । "
बाह्य प्रवृत्तिमें कोई विशेष अन्तर न होते हुए भी वीतरागभाव विशिष्ट ज्ञानी और अज्ञानीमें मनोवृत्तिकृत महान् अन्तर है । इसलिये भोग, विषयादिके मध्य में रहते भी निर्मोही ज्ञानी कविके शब्दोंमें 'करत मन्थको छटाछटोसी ।' उदाहरण के लिये बिल्लोको देखिये। अपने मुहमें वह चूहेको दलाती है, उस मनोवृत्ति में और जब वह उसी मुंहमें बच्चेको दबाती है, कितना अन्तर है । बच्चेको पकड़ने में क्रूरता नहीं है, चूहेको पकड़ने में महान् करता है । इस प्रकार ज्ञानी और अज्ञानीकी भिन्न-भिन्न मनोवृत्ति के अनुसार कर्मपन्न अन्तर पड़ता है ।
मनोभावों को समझाने के लिए जैन सिद्धान्तमें एक सुन्दर रूपक बताया गया है। उसका वर्णन 'Statesman' कलकत्ता में भ्रमणबेलगोलाके जैनमटका उल्लेख करते हुए छपा था । उस वर्णनम जैनमठकी दीवालपर अंकित चित्रका इस प्रकार स्वष्टीकरण किया गया है
"The most interesting of these depicts is six men standing by a mango tree. They have hearts of various hues, corresponding to their respect for life. The black-hearted man tries to fall the tree, the indigo, grey and red hearted are respectively content with big boughs, small branches and tiny springs, the pink-hearted man merely plucks a single mango, but the man with the white heart of perfe ction waits in patience for the fruit to drop."
इन चित्रोंमें सबसे अधिक मनोरञ्जक वह चित्र है जिसमें एक आमके वृक्षके नीचे छह व्यक्ति खड़े हुए अंकित हूँ। उनके अन्तःकरण में जीवन के प्रति जिस प्रकारका भाव है तदनुसार उनके अन्तःकरण के विविध वर्ण बताये गये है । कृष्ण अन्तःकरणबाला वृक्षको जड़मूलसे उखाड़नेके काप और पीत मनोवृत्तिवाले क्रमशः बड़ी डाल, छोटी ढाल और लघु उपशाखा सन्तुष्ट है। पद्म मनोवृत्ति वाला केवल एक ही आम तोड़कर तृप्त है ।
प्रयत्न में लगा है। नोल,