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अहिसाके आलोकमें है । यदि ऐसा न होता तो आज मांस-भक्षणमें घे देश अन्य मांस-मक्षी देशोंसे आगे न बढ़त । एक बार 'समाचार' पत्रों में धौद्ध जगत्के लोगोंके आहार-पानपर प्रकाश डालनेवाला लेख प्रकट हुअा था। उससे विदित होता था कि वे लोग आहार के नामपर किसी जीवको नहीं छोड़ते । वे सर्वभक्षी है, सर्पभक्षी भी है। कृत्रिम उपायोंसे मलित वस्तुओं में कीटादि उत्पन्न फर वं अपनी इच्छाको तृप्त करते हैं। प्रतीत होता है अपने धर्ममें आनन्दका अतिरेक अनुभव करनेवाले धर्मानन्दजो कोसम्बोने यह सोचनेका रुष्ट नहीं किया कि धर्म के प्रधान स्तम्भमैं जीवनके पौथिल्य गतानुगतिक वृत्ति वाली जनताका पपा हाल होता है। बुद्ध जगतकी अपर्वादित मांसनशता यह निर्णय निकालने के लिए प्रेरित करती है, कि शाक्य मुनिके जीवन के साथ एकर-मह व-शूकर मांसका दुर्भाग्यसे सम्बन्ध रहा होगा 1 उस दक्ष चैलोंने अपना अबको यति सारा गुरु
कोई कर दिया। कोसम्बीजीको इसी प्रकाशमें जनोंका आहार-पान और महावीरको जीवन-चर्याका अध्ययन करना चाहिए था । कदाचित् 'कुक्कुडमस, बहु अद्वियं' का सम्बन्ध प्रक्षिप्त न होकर यदि वास्तममें महावीर के साथ होता तशा उसका मांस-परक अर्थ रहता, तो बौद्ध जगतके समान जैन जगत् भी आमिप आहार द्वारा अहिंसा तस्वजानकी सुन्दर समाधि बनाए बिना न रहता। बाघ जाली प्रमाणों की निस्सारताका पता अक्षयंग साक्षियों के द्वारा न्यायविद्याके पण्डित आज को चुस्त, चालाक अदालतों में लगाया करते हैं। उसी अन्तरंग साक्षीके प्रकाशामें यह ज्ञात होता है कि बोजगस्के ममान हिमन-प्रवृत्तिके पोषणनिमित्त परम कारुणिक महावीरके पुण्य जीवन में बुद्ध-जीधनकी तरह आमिष आहारकी कल्पना की गई। किन्तु, जन आधार-शास्त्र, जंत धमणोंकी ही नहीं, गृहस्थोंकी चर्याका मांसके सिवा अन्य भी असात्त्विक शाकाहार तकसे असम्बन्ध रूप अन्तरंग साक्षियों महावीर की अहिंसाको मूर्य प्रकाशके समान जगत के समक्ष प्रकट फरती है और मुमुक्षुको सम्यक मार्ग सुझाती है कि विश्वका हित पवित्र जीवन
श्रीयुत गंगाधर रामचन्द्र साने ची० ए. ने 'भारतवर्षांचा मामिक इतिहास' में पूछा है पानी छानकर पीने से क्या लाभ हैं ? आज यन्त्रविद्याके विकास होने के कारण प्रत्येक विचारककै ध्यानमें आ जाते है। पानी छानकर पीनेसे अनेक जलस्य जन्तु पेट में पहुँचनेसे बच जाते हैं । जन्तुओंके रक्षण के साथ पीने वालेका भी रक्षण होता है। क्योंकि कई विचित्र रोग जैसे नहरुमा आदि अनन्छने पानीके ही दुष्परिणाम है । अत्यन्त सूक्ष्म जीवोंका छन्ने के द्वारा भी रक्षण सम्भव नहीं है, फिर भी माइक्रास झोप-अणुवीक्षण यन्त्र द्वारा इस बातका पता चलता है कि कितने जीवोंका एक साधारण सी प्रक्रियासे रक्षण हो जाता है । मनुस्मृति