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जैनगासन
अहिंसाके आलोकमें अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम्'
-स्वामी समन्तभद्र, दहनस्वयम्भ, ११९ पुण्य जीवनको यदि भव्य-भवन कहा जाए तो अहिंसा-तत्त्वज्ञानको उसको नींव मानना होगा। अहिंसात्मक वृप्तिके बिना न व्यष्टिका कल्याण है और न समष्टिका | साधनाका प्राण अथवा जीवन-रस अहिंसा है । आज भारतीय राष्ट्रमें अहिंसाकी आवाज खूब सुनाई पड़ती है। देशने पराधीनताके पाशसे छूटने के लिए अपनी किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में हिंसात्मक पद्धतिको एकमात्र अवलम्बन माना था । और इसीलिए रक्तसतके दिता सादनं प्रगतिके पथपर दलगतिसे अपना कदम बढ़ाया और स्वाधीन भी हो गया । फ्रांमके विश्वविख्यात विद्वान रोम्या रोलां इस अहिंसाके विषय में बहुत उपयोगी तथा प्रबोधप्रद बात कहते हैं, "Tic Rishis who discovered the Law of Nonviolence in the midst of violence were greater geniuses than Newton, grcater warriors than wellington. Nonviolence is the law of our specirs as violence is the law of the brute,"-जिन सन्तोंने हिसाके मध्य अहिंसा सिद्धान्तकी खोज की, वे न्यूटन से अधिक बुद्धिमान थे तथा चिलिगटनसे बड़े योद्धा थे ।''जिस प्रकार हिमा पशुओं का धर्म है, उसी प्रकार अहिंसा मनुष्योंका धर्म है।"१ अपनो महत्त्वपूर्ण रचना 'हिन्दुस्तानकी पुरानी सभ्यता' (१९६१३) में धुरन्धर विद्वान बटर वेमीप्रसाद ने लिखा है "सबसे केंचा आदर्श, जिसकी कल्पना मानव मस्तिाक कर सकता है, अहिंसा है। अहिंसाके सिद्धान्तका जितना व्यवहार किया जायगा, उतनी ही मात्रा सुख और शान्तिकी विश्व-मण्डलमें होगी।" उनका यह भी कथन है कि ''यदि मनुष्य अपने जीवनका विश्लेषण करे, तो इस परिणामपर पहुंचेगा कि सुख और शान्तिके लिए भान्तरिक सामंजस्मकी आवश्यकता है।" यह अन्त करण की स्थिति तन्द ही उत्पन्न होती है, जब यह जीव सब प्राणियोंके प्रति प्रेम और अहिंसाका व्यवहार करता है । जहाँ अहिंसा समत्वके सूर्यको जगाती है, वही हिंसा अपवा क्रूरता विषमताकी गहरी अंधियारीको उत्पन्न करती है, जहाँ यह अन्य जीवोंकी हत्याके साथ अपनी उज्जवल मनोवृत्तिका भी संहार करता है।
संसारके धोका यदि कोई गणितज्ञ महत्तम-समापवर्तक निकाले तो उसे अहिंसा धर्म ही सर्वमान्य सिद्धान्त प्राप्त होगा। इस तस्म-ज्ञान पर जैन थमणोंने 1. Mahatına Gandhi by Roman Rolland p, 48,