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जैनशासन
आए हैं? भाण्डायन उनका नाम वसिष्ठ बताता है । यह मुन सोधातकी कहता है- "मये उण जानिएं, बाघो वा थियो वा एसो ति" - मैं तो समझता था कि कोई या अथवा भेड़िया आया है। इसका कारण वह कहता है-' 'ते परावणि
सावराइया कलोडिया महमाइदा जैसे ही वे आये उन्होंने एक दोन गोवंशको स्वाहा कर दिया। इसपर भाण्डायन कहता है कि घमंसूत्र में कहा है कि मधु और दधिकं साथ मांसका मिश्रण चाहिए। इसलिए श्रोत्रिय गृहस्थ ब्राह्मण अतिथिके भक्षण के लिए गाय, बैल अथवा बकरा देवे 1
इसका अत्यन्त दुःखद मल पेठ ग्राम का ता०
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आज भी धर्म के नामपर कैसी भीषण हिंसा होती है, वर्णन इन पंक्तियों से ज्ञात होता है, "मद्रास प्रान्तके २१ जुलाई १९४९ का समाचार है कि एक पिताने अपने पाँच वर्षके बालकका सिर हथियार से इसलिए काट लिया, कि उसे पूर्व रात्रिका यह स्वप्न आया था, जिसमें उसे दैवी शक्तिने बलि देने को कहा था; यह घटना कालुकरा ग्राम में हुई ( वेंकटेश्वर समाचार २९७४९५.२.) ।
इस प्रसंग इतना उल्लेख और आवश्यक है कि जहाँ वाल्मीकि आश्रम में वसिष्ठके लिए गोमांस खिलाने का वर्णन है, वहाँ राजर्षि जनक को मांन-रहित मधुपर्कका उल्लेख है। इसीलिए भाण्डायन कहता है- निवृत्त मांसस्तु तत्रभवाम् मक:' ( पृ० १०५-७) ।
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वैदिक वाङ्मयका परिशीलन करने पर विदित होता है, कि पुरातन भारतमें हिंसा और अहिंसाकी दो विचारधाराएं शुक्लपक्ष कृष्णपक्ष के समान विद्यमान श्रीं प्रो० ए० एम० ए० मद्रास तो इस निष्कर्षपर पहुंचे हैं कि कहिसाकी विचारधारा उत्तर कालमे जैन कहे जानेवालों द्वारा प्रवर्तित, जित एवं समर्पित थी । ब्राह्मण और उपनिषद् साहित्य में विदेह और मगधमें अनुप्राजहां क्षत्रिय नरेशोंका प्राबल्य मा - अहिसात्मक देशका प्रचार था। वे लोग एक विशेष भाषाका उपयोग करते थे जिसमें 'न' को 'ण' उच्चारित किया जाता था, जो स्पष्टतः प्राकृत भाषा के प्रभाव या प्रचारको सूचित करता है । पहिले तो कुरु पांचाल देश के विषगण मगध और विदेह भूमिवालोंको अहिंसात्मक यज्ञके कारण कुछ समझ उन प्रदेशको निषिद्धभूमि-सा प्रचारित करते थे, किन्तु पश्चात्
केतुत्वमें अहसा और अध्यात्मविद्याका प्रभाव बढ़ा और इसलिए अपनेको अधिक शुद्ध मानने वाले कुन पांचाल देशीय विद्वज्जन आत्मविद्याकी शिक्षा-दीक्षा निमित्त विदेह बादिकी ओर आने लगे ।
बुद्धकालीन भारत में भी इसी प्रकारकी कुछ प्रवृत्ति दिखाई देती है। वहीं 'महाबा' में गौतम बुद्ध धर्मोपदेश देते हुए कहते हैं-- इरादा पूर्वक भिक्षुको किसी भी प्राणी - कीड़ा अथवा घोंटो तककी हिंसा नहीं करनी चाहिए, वहां