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अहिंसा के आलोक में
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जितना वैज्ञानिक और तर्क संगत प्रकाश डाला है, उतना अन्यत्र देखने में नहीं आता । यह कहना मत्यकी मर्यादाके भीतर है कि जैनियोंने इतिहासातीत कालसे लेकर अहिंसा तत्त्वज्ञानका शुद्ध रोतिमे संरक्षण किया है। एक समय था, जब वैदिक युग में स्वर्गप्राप्ति के लिए लोगों
मार्ग बताता था । इससे स्वार्थी व्यक्तियोंने दिया अपना भविष्य उज्ज्वल मान अगणित पशुओंका संहार किया । वैदिक साहित्य के शास्त्रों में हिसात्मक यज्ञकी पुष्टिमें विपुल सामग्री नम्मिलित की गई । उस आध्यात्मिक ज्योति-विहीन जगत् में अपने ज्ञान, शिक्षण और सेवा द्वारा जैन धर्मन अहिंसाघमको पुनः प्रतिष्ठा कराई
प्रोफेसर आयंगर ने लिखा है, के पुष्प सिद्धान्तने वैदिक हिन्दू धर्मकी क्रियाओं प्रभाव डाला है। यह जैनियोंके उपदेशोंका प्रभाव है । जिससे बाप्पोन पशुबलिको पूर्णतया बन्द कर दिया था तथा यज्ञोंके लिए सजीव प्राणियोंके स्थान में आनेके पशु बनाकर कार्य करना प्रारम्भ किया।
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लोकमान्य लिकने यह स्पष्टतया लिखा है- " अहिंशा परमो धर्मः इस उदार सिद्धान्ते ब्राह्मण धर्मपर चिरस्मरणीय पगारी हूं । पूर्व कालमें यज्ञके लिए असंख्य पशु-हिमा होती थी । इसके प्रमाण 'मेघदूत काव्य' आदि अनेक ग्रन्थों में मिलते हैं । ..परन्तु उस घोर हिसाका ब्राह्मण धर्मसे बिदाई ले जानेका श्रेय जैन-धर्म के हिस्से में है ।" (मुंबई समाचार, १० - १२ - १९०४) ।
मेंदूत (उलो० ४५ ) में कवि कालिदास अपने मेघसे बहते हैं कि "उज्जयनी से आगे बढ़ते समय चर्मण्वती नामकी नदीका दर्शन होगा। बहू रन्तिदेव नायक नरेश द्वारा गोन्ववयुक्त अतिथियज्ञ सम्बन्धी चर्मके जलसे युक्त होने के कारण चर्मण्वती कहलाती है। उसे गोवलिके कारण पूज्य मानते हुए तुम यहाँ कुछ समय ठहरना ।"
भवभूतिने उत्तररामचरितके चौथे अंक में वाल्मीकि आश्रम में सोघातकी और भाण्डायन दो शिष्यों का वार्तालाप वर्णित किया है । वसिष्ठ ऋषिको देख सीधाकी पूछता है - " भाण्डायन, आज वृद्ध साधुओं में प्रमुख वीरधारी कोन अतिथि
1. "The noble principle of Ahimsa has influenced the Hindu Vedic rites. As a result of Jain preachings animal Sacrifices were completely stopped by the Brahmans and images of beasts made of four were substituted for the real and veritable ones required in conducting yagas" (Prof. M 5. Ramswami Ayangar. M. A.)