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प्रबुद्ध-साधक
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मन
स्त्रिया भक्तिपूर्वक उनके समीप पहुँचती है फिर भी उनमें विकार-भावका रंचमात्र भी दर्शन नहीं होता। इसके अतिरिक्त उनका दर्शन कर तुम यह कहोगे कि वे आत्म-ध्यान में निमग्न है।''
मेकिएल नामक विद्वान् पुरातन-भारत नामक अपनी पुस्तक लिखते है-"दिगम्बर मिहार करनेवाले यह जैन मुनि कष्टोंकी परवाह नहीं करते थे । वे सबसे अधिक सम्मानको दृष्टिसे देखे जाते घे । प्रत्येक धनी व्यक्तिका घर उनके लिए उन्मुक्त था---यहांतक कि वे अन्तःपरमें भी जा सकते थे ।
ये समता, जिनेन्द्रस्तुति, वीतरागवन्दन, स्वाध्याय, दोषशुद्धि निमित प्रतिक्रमण तथा प्रत्यास्यानरूप छह आवश्यक कौको सावधानीपूर्वक पालते हैं । इनका चरित्र उदात्त होता है।
1. "Although the women reach them out of devotion......you do
not sec in them any sign of sensuality, but on the contrary you would say they are absorbed in abstraction,"--). B.
Tavernier's Travels p. 291-292. 2. "These men (Jain Saints,) went about naked manured them
sc vcs to hardships and were held in highest honour. Every wealthy house is open to them even to the apartments of the women."
___Mc. Crindle's Ancient India p.71-72. ३. "सम्यक प्रकार निरोध मन-वच-काम आतम ध्यावते ।
तिन सु-थिर मुद्रा देखि मृग-गण उपल खाज खुजावले ।। रस-रूप-गंध तथा फरस अरु शब्द शुभ-असुहावने । तिनमें न राग-बिरोब पंचेन्द्रिय जयन पद पावने । समता सम्हारै थुति उचार, वन्दना जिन देव को । नित करें श्रुत रति, धरै प्रतिक्रम, तज तन अहमेव को ।। जिनके न होन, न बन्त-धोवन लेश अंबर आवरन । भू माहि पिछली रयनि में कछ शयन एकाशन करन ।। एक बार दिन में लैं अहार खड़े अलप निज-पाणि में । कर-लोच करत न उरत परिपन सो लो निजध्यान में ।। अरि-मित्र, महल-मसान, कंचन कांच, निन्दन-युतिकरन । मीवतारन-असि प्रहारन में सदा समता धरन ।।"
-छहढाला, छठवीं बाल ।