________________
जैनशासन देह-विरफ्त ममत्त बिना मुनि सबसौं मंत्री भाव बहैं । आतम लीन, अदोन, अनाकुल, गुन वरनत नहिं पार लहैं।"
-पार्श्वपुराण, भूरदास दिगम्बर जैन मनिका जीवन और मदा जगतको पुकार-पुकार कर जगाती हुई कहती है -क्यों मोहके फंदमें फैलकर विकृति और विपत्तिकी और दौड़े चले जा रहे हो। आओ, अकिंचनताका पाठ पढ़ो, प्रकृति के प्रकाश में आत्माकी विकृतिको धो हालो; तब तुम्हारे पास आनन्द तथा शान्तिका निझर उदभूत हो सबका कल्याण करेगा। देखते नहों, सारो प्रकृति किसी प्रकारका प्रावरण धारण नहीं करती-एक मनुष्य है जो अधिक ज्ञान मम्पन्न होते हुए भी अपने विकारों एवं अपनी दुर्बलताओंको दूर न कर उनपर सुन्दर वस्वादिका मोहक आवरण डाल अपने आप एका जगत् ।। है। क ल पसार का, हरिण पक्षो आदि सभी प्राणी दिगम्बरस्वकी मनोरम मुद्रासे अंकित है ।
परिग्रह आदिको आत्मदुर्बलताका अंग न मान उसके समर्थदमे लगनेवालोंके समाधान में ताकिक अलंकदेव कहते है कि अगस्त में विविध उपासकोंके अनेक उपास्वदेव हैं और उनको वैष-भुषा पृथक-पृथक् है । किन्तु जगलमें एक दिगम्बर मुद्राका ही व्यापक रूपसे प्रमार पाया जाता है
"नो ब्रह्मांकित्तभूतलं न च हरे: शम्भोन मुद्रांकित नो चन्द्रार्ककरांकित्तं सुरपतेवंज्रांकितं नैव च । षड़वक्याम्बुज-बौद्ध-देव-हुतभुक्यक्षीरगनांकितं नग्नं पश्यत वादिनो जगदिदं जैनेन्द्रमुद्रांकितम् ।।"
-अकलंकस्तोत्र, ११ । अपने अन्तःकरणमें काम-भावनाका ननिक भी विकार धारण न कर मारी जाति के लिए चित्त मातृत्वको भावनाको प्रवुद्ध करनेवाले मलिन शरीर फिन्तु सुसंस्कृत पृष्य चरित्र दिगम्बर मुनिजन जिस देश में विहार करते है, वहाँके लोग सदाचार तथा सद्भावनाओंसे सम्पन्न हो सुखी रहते हैं। आज ऐसी पवित्र आत्माओंकी अत्यन्त विम्लताके कारण भारतवर्ष में श्रेष्ठ सदाचार और नैतिक जीवन में ह्रास दिखायी देता है। पुरातन भारत शान्ति समृद्धि और अभ्युदयका केन्द्र बताया जाता है। उस समय मोहारि-विजेता दिगम्बर-मुनीन्द्रोंका सर्वत्र छह संख्या में जिहार हुआ करता था। मगस्पनोज कहता है-- "जब बादशाह सिकन्दर भारत में आया था तब उस तक्षशिलामें कुछ दिगम्बर मुनियों के दर्शन किए थे।"१ प्रो. आयंगरने लिखा है कि-"ये जैन आचार्य अपने चरित्र, 1, "Wien Alexander came to India he saw some paked saints
in Taxila and took one of them with him." Magesthenes.