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जैनशासन
जिस प्रकार आजका शिक्षित भौतिक शास्त्रोंके विषय में सूक्ष्मसे सूक्ष्म गोषणा और शोधका कार्य करता है तथा अपने कार्यमें अधिक संलग्नताके कारण वह अपने प्राणोंका खेल करनेसे भी मुख नहीं मोड़ता, यदि उस प्रकारको निष्ठा और
तत्परता आत्म-विकासके अंगभूत विश्व के रहस्य-दर्शन के लिए दिक्षाए तो कितना हिरो समय किया विचित्र पूझ सके सच्चे कल्याण
की बात सोचने-समझने के मार्गमें उपस्थित की जाती है । किन्तु आत्माको विषयभोगोंमें फंसा परतन्त्र और दुःखी बनानेवाली सामग्रीका संग्रह करना अश्या चर्चा में समस्त जीवनको आहुति करना भी जीवनका सव्यय समझा जाता है-- कैसी विचित्र बात है यह।
यदि इस विषयका वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाव तो विदित होगा कि दृश्य-जगत्में सघेसन सत्त्व (इसे उपनिषदोंमें 'आत्मा' कहा गया है) और अपेतन तत्त्वोंका सदुभाव है। 'सत्यं ब्रह्मा, जगन्मिध्या'--एक ब्रह्म हो तो सत्य है और शेष जगन काल्पनिक सत्य है-स्पष्ट शब्दोंमें मिथ्या है, यह घेदान्तियोंकी मान्यता वास्तविकतासे समन्वय नहीं रखती । आत्म-तत्त्वका सद्भाव जितने रूपमें परमार्थ है, उसने ही रूपमें अचेतन तत्त्व भी वास्तविक है। दार्शनिक विश्लेषणकी तुलनापर सत्य की दृष्टिसे सचेतन-अचेतन' दोनों तत्त्य समान है । अतः जगत्को मिथ्या मनिनेपर ब्रह्मकी भी वही गति होगी। __तत्त्वमें उत्पत्ति, स्थिति तथा विनाश स्वभाव पाया जाता है । ऐसी कोई समात्मक वस्तु नहीं है, जो केवल स्थितिशील ही हो तथा उत्पत्ति और विनाशके चक्रसे बहिर्भूत हो । जन सूत्रकार आचार्य उमास्वामी ने लिखा है कि-"उपायव्ययधोक्युक्तं सत्" । इस विषय में पधाध्यायोकार लिखते है जि- 'तत्त्वकालक्षण सत् है। अभेद दृष्टिसे तत्वको सत्स्वरूप कहना होगा। यह सत् स्वतः सिख है-इसका अस्तित्व अन्य वस्तुके अवलम्बनको अपेक्षा नहीं करता। इसी कारण, यह तत्त्व अनादि निधन है-स्वसहाय और विकल्प-रहित भी है। ___ साधारण दृष्टिसे एक ही वस्तुमें उत्पत्ति-स्थिति-श्ययका कथन असम्भव पातोंका भण्डार प्रतीत होता । किन्तु मूक्ष्मविचार भ्रमका क्षणमात्र में उन्मूलन किये बिना न रहेगा। यदि 'आम' को पदार्थ (तत्त्व) का स्थानापन्न समझा जाए, तो कहना होगा कि कच्चे आममें पकने के समय हरेपनका विनाश हुआ, पीले रंग
१. पं० राहुलजोने इस विषयको असत्य रूपसे 'दर्शन-दिग्दर्शन' में लिखा है। २. तस्वार्थमूत्र ५। ३01 ३. "तत्त्वं सस्लामणिक सन्माचं या यतः स्वतः सिद्धम् ।
तस्मावनादिनिधनं स्वसहायं निर्विकल्प च"