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विश्व-स्वरूप बाली पकी अवस्थाका उसी समय प्रादुर्भाव हुआ और इन दोनों अवस्माओंको स्वीकार करनेवाले आमका स्थायित्व धोव्यत्व बना रहा। यह तो उस 'सत्' के दर्शनको दृष्टिका भेद है जो एक सत अथवा तत्व विविध रूपसे ज्ञान-गोचर बनता है । वामको पीली अवस्थापर दृष्टि डालनेसे सत्का उत्पाद हमारे दृष्टि-बिन्दुमें प्रधान बनता है। विनाश होनेवाले हरे रंगको लक्ष्य-गोचर बनानेपर रात्का विनामा हमें दिखता है। आम-सामान्यपर दृष्टि डालनेपर न तो उत्पाद मालूम होता है और न व्यय । इस आमके समान विश्व सम्पूर्ण पदार्थ उत्पाद, व्यय तथा धोव्य युक्त है । तार्किक समातभाने इसी लिए तस्वको पूर्वोक्त त्रिविधताओं से समन्वित स्वीकार किया है-"तस्मात तवं यात्मकम् |"
इम त्रिविध तत्त्वष्टिमै किन्हींको तीव्र विरोधका दर्शनरूपी तर्काभास चैन नहीं लेने देता। उन्हें इस बातको ध्यानमें रखना होगा, कि तत्त्व-दर्शनको तीन दृष्टियों के परिणामस्वरूप वह सत् श्यात्मक प्रतीत होता है। विरोध तो तब हो जब एक ही दृष्टि से तीनों बातोंका वर्णन किया जाए | नवीन पर्यायकी अपेक्षा उत्पाद कहा है और पुरातन पर्याय की दृष्टि से व्यय बतलाया है । नवीन पर्यायकी दृष्टिसे उत्पादके समान व्यय कहा जाए अथवा पुरातन पर्यायकी अपेक्षासे ही व्ययके ममान उत्पाद माना जाए अथवा धोयला स्वीकार की जाए तो विरोध तत्वको अवस्थितिको संकटापन्न बनाए बिना न रहेगा । स्याद्वादकी सरजीवनीके संस्पर्शको प्राप्त करनेपर विरोधादि विकारोंका विष तत्वका प्राणापहरण न कर उसे अमर जीवन प्रदान करता है। इस स्यावाद विधाके विषयमें विवाद विवेचन आगे किया जाएगा । इस प्रसंगमें इतनी बात ध्यान में रखनी चाहिए कि कोई वस्तु एकान्तसे स्थितिकील उत्पत्ति अथवा विनाशात्मक नहीं पायी जाती । अतएव वेदान्तियोंका ब्रह्म जितना अधिक सत्य है, उतने ही अन्य तत्व भी है।
विज्ञान-विचारसम्पन्न दार्शनिकचिन्सन तो यह बताता है कि सम्पूर्ण विश्व पर्याय अबस्था (Modification) को दृष्टि से क्षण-क्षणमें परिवर्तनशील है । इस दृष्टि से तत्वको क्षणिक विनाशी अश्या मसतरूप धारण करनेवाला भी कह सकते हैं। यदि उस तत्त्वपर द्रव्य (Substance) की अपेक्षा विचार करें तो तत्त्वको आदि और अन्तरहित अंगीकार करना होगा। सर्वथा असत् या अभावरूप होनेवाली वस्तुको आधुनिक-विज्ञानका पण्डित भी तो नहीं मानता । यस्तु कितने ही उपायों द्वारा मृत्यु अथवा बिनाशके मुख में प्रविष्ट करायी जाए, उसका समूल नाश न होकर मूलभूत तत्त्व अवश्य अवस्थित रहेगा। इस महान सत्यको स्वीकार करनेपर विश्व-निर्माण कर्ता ईश्वरको म मानते हुए भी जगसको सुव्यवस्था
१. आप्तमीमांसा क्लो. ६०।