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संयम बिन घडिय म इक्क जाहु होनेके पूर्व ही इसको जीवन-लीला समाप्त हो जाती है । महाकवि भूषरवास मोहो जीवकी दीनतापूर्ण अवस्याफा कितना सजीव चित्रण करते हैं
"चाहत हो धन लाभ किसी विध, तो सब काज सरें जियरा जी। गेह चिनाय करौं गहना कछ, व्याह सुता-सुत बांटिये भाजी ।। चिन्तत यौं दिन जाहि चले, जम आन अचानक देत दगा जी । खेलत खेल खिलारि गए, रहि जाय रुपी सतरंजकी बाजी ।।"
इस मोही जीवकी विचित्र अवस्था है। बाह्य पदार्थोके संग्रह, उपयोग, उपभोगके द्वारा अपने मनोदेवता नया इन्द्रियोंशी परितृप्त करने का निरन्तर प्रयत्न करने हुए भी इसे कुछ साता नहीं मिलनी । कदापित् तीव्र पुणोदयसे अनुकूल सामग्री और सन्तोष-प्रद वातावरण मिला, तो लालसाओंकी वृद्धि उसे बरी तरह रेचन बनानी और उस अन्व यारो भइ आत्मा वैभव, विभूतिके द्वारा प्रदत्त विचित्र यातना भोगा करता है। एक बड़े धनीको लक्ष्य करते हुए हजरत अकबर कहते है.---
“सेठ जीको फिक थी एक एकके दस कीजिए। मौत आ पहुंची कि हज़रत जान वापिस कीजिए।"
एक और उर्दू भाषाका कवि प्राण-पूर्ण वाणी में संसारकी असलियतको चित्रित करते हुए कहता है
"किसीका कंदा नगीने पं नाम होता है। किसीकी जिंदगीका लाएज जाम होता है ।। अजब मुकाम है यह दुनिया कि जिसमें शामोशहर
किसीका कूच-किसीका मुकाम होता है ।।" जब विषय-भोग और जगतकी यह स्थिति है, कि उसके सुखों में स्थायित्व नहीं है -वास्तविकता नहीं है और वह विपत्तियोंका भण्डार है, तब सत्पुरुष और कल्याण साधक उन सुखोंके प्रति अनासक्त हो जात्मीक ज्योति के प्रकाशमें अपने जीवन नौकाको ले जाने हैं, जिसमें किसी प्रकारका स्वतरा नहीं है । इस प्राणीमें यदि मनोबलको कमी हुई तो विषयवासना इसे अपना दास बना पबदलित करने में नहीं चूकती । इस मनको दास बनाना कठिन कार्य है । और यदि मन वशमें हो गया तो इन्द्रिया, वासनाएँ उस विजेताके आगे बारमसमर्पण करत ही है। यही कारण है कि सुभाषितकारको यह कहना पड़ा
"मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।"