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न हि वैरेण वैराणि समन्तीध कदाचन। बुद्ध ने कहा था-वैर से कभी वैर शांत नहीं होता। वैर मैत्री से समाप्त होता है। वैर से वैर को नहीं colors मिटाया जा सकता, आग से आग को नहीं बुझाया जा सकता। जल से उसे शांत किया जा सकता है।' ____ विद्याधरपति! तुम जीत जाओगे तो क्या सुख से जी पाओगे? क्या यह वैर की आग तुम्हें शांति से जीने देगी? निरन्तर मन में भय बना रहेगा मैंने इसको हराया है, वह कहीं फिर आक्रमण न कर दे। यह विकल्प बार-बार तुम्हारे मन में आता रहेगा। मैं तुम्हें आज महावीर का एक संदेश सुनाने आया हूं। तुम महावीर को जानते हो, जो तीर्थंकर हैं?'
'हां!'
गाथा परम विजय की
'उनका संदेश है-अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो सव्विन्दिएहिं सुसमाहिएहिं।
आत्मा की रक्षा करो, अपनी रक्षा करो। तुम तो अभी दूसरों को सताने में लगे हुए हो। महावीर ने रक्षा का उपाय भी बताया जब सब इंद्रियों पर हमारा नियंत्रण हो जाए तब आत्मा की सुरक्षा हो सकती है।'
'विद्याधरपति! तुम बहुत शक्तिशाली हो, विद्याधरों के प्रमुख हो, किन्तु इंद्रियजयी नहीं हो। अगर इंद्रियजयी होते तो एक कन्या के लिए इतना बड़ा युद्ध का समारंभ नहीं करते।
क्या तुम राजनीति विशारदों के इस मत को जानते हो-शासक को इंद्रियजयी होना चाहिए। जो शासक या राजा इंद्रियजयी नहीं होता, वह स्वयं नष्ट होता है, प्रजा को भी नष्ट कर देता है। ___ विद्याधरपति! मैंने तुम्हें महावीर का अच्छा संदेश सुनाया है, जो तुम्हारे लिए हितकर है। मैं इसी संदेश को सुनाने के लिए आया हूं। तुम इस बात पर अनुचिंतन करो-जो अपनी आत्मा की रक्षा नहीं करता, अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं करता, वह नष्ट होता है, दुःख पाता है। जो अपनी आत्मा की रक्षा करता है, इंद्रियों पर विजय पा लेता है, वह दुःखों से मुक्त हो जाता है।
विद्याधरपति! मैं तुम्हारा विरोध नहीं कर रहा हूं। मैं मानता हूं कि मेरी बात तुम्हें प्रिय नहीं लग रही है किन्तु मैं तुम्हारे हित की बात कह रहा हूं। तुम अपने हित को सामने रख कर सोचो।'
रत्नचूलखगाधीश! सद्विचारपरो भव।
बलिनोप्युत्पथारूढाः, क्षणान्नष्टाः प्रमादिनः।। 'रत्नचूल! सद्विचार को विकसित करो। लगता है तुम्हारे दिमाग में काम का असद् विचार घुस गया है, उसे तुम दूर करो। यह काम का विचार तुम्हें युद्ध में झोंक रहा है। मैं चाहता हूं-तुम अच्छा विचार करो, अच्छा सोचो। जब दिमाग में अच्छा विचार होता है तब सब ओर शांति होती है। जब दिमाग में कोई बुरा विचार घुस जाता है तब चारों ओर विनाश ही विनाश हो जाता है। तुम निषेधात्मक विचार को छोड़ो, विधेयात्मक विचार को शुरू करो। जैसे-जैसे निषेधात्मक विचार को छोड़ोगे, विधेयात्मक विचार को आगे बढ़ाओगे, यह युद्ध समाप्त हो जाएगा। तुम वस्तुतः विजयी बन जाओगे।' ___ जम्बूकुमार ने प्रश्न किया-'विद्याधरपति! क्या आपको यह पता है कि राजा मृगांक यह कन्या किसको देने का निश्चय कर चुका है?'