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उसका सपना आगे बढ़ा-मैं तालाब में गया। तालाब में डुबकी लगाई और तालाब का सारा पानी पी गया। फिर भी प्यास नहीं बुझी। झील में गया, पोखरनी में गया, उन सबका पानी पी गया, फिर भी प्यास नहीं बुझी। आखिर समुद्र के पास गया, देखा-समुद्र में तो अथाह पानी भरा है। पर मेरी प्यास इतनी तीव्र थी कि समुद्र का खारा पानी भी सारा पी गया। समुद्र सूख गया, फिर भी प्यास नहीं बुझी।'
'पदमश्री! तुम बताओ कठिहारा समुद्र का पानी पी गया फिर भी प्यास बुझी या नहीं?
पद्मश्री बोली-'आप कैसा प्रश्न पूछ रहे हैं? आप स्वप्न की बात सुना रहे हैं। सपने में पीए हुए पानी से प्यास कैसे बुझेगी?'
'पदमश्री! अच्छी बात है। तुम समझ गई कि यह सपने की माया है। तुम यह भी समझो कि ये कामभोग भी सपने की माया है, इनसे प्यास बुझती नहीं है।'
'प्रियतम! क्यों नहीं बुझती?'
'पद्मश्री! ईंधन से क्या कभी आग बुझती है? ईंधन डालते जाओ, आग कभी बुझेगी क्या? न कभी ईंधन से आग बुझती और न कभी तेल से चिराग बुझता।'
'प्रियतम! आपकी बातें बहुत रहस्यमयी हैं। आप कहना क्या चाहते हैं?'
'पद्मश्री! पहले उस कठिहारे के स्वप्न की गाथा ध्यान से सुनो। वह समुद्र का पानी पी गया, प्यास नहीं बुझी फिर वह आगे बढ़ा। उसे सपना आ रहा है, बहुत मीठा सपना आ रहा है। वह आगे गया, सोचा-समुद्र का पानी पी गया, प्यास तो बुझी नहीं अब क्या करूं? तब वह मारवाड़ में, मरुभूमि में
गाथा
परम विजय की गया। एक कुआं देखा, साठी का कुआं, गहरा कुआं। रस्सा पड़ा था किन्तु बालटी नहीं थी। आस-पास में घास के पूले पड़े थे। एक पूला उठाया, रस्से के बांधा, कुएं में डाला, पानी में भिगोया और उसको बाहर निकाला। वह गीला होकर बाहर आया। अब सोचा-इस पूले को मुंह में निचोड़ लूं और प्यास बुझा लूं।'
'पद्मश्री! जिस व्यक्ति की प्यास समुद्र का पानी पीने से भी नहीं बुझी, क्या मुंह में घास का पूला निचोड़ने से उसकी प्यास बुझ जायेगी?'
'प्रियतम! यह कभी संभव नहीं है।'
'पद्मश्री! तुम जरा सोचो-हमने अनेक बार स्वर्ग की यात्रा की है, स्वर्ग में जन्म लिया है, हम देवलोक में गये हैं और देवलोक के दिव्य भोग हमने भोगे हैं। उन भोगों को हम समुद्र के समान मान लें। देवता और आदमी की भौतिकता की दृष्टि से तुलना कहां है?'
एक तुलना की गई-दुनिया की सारी संपत्ति, सोना-चांदी, हीरा-पन्ना, माणक, मोती सबको इकट्ठा कर लो। दूसरी ओर एक व्यन्तर देवता, जो चार प्रकार के देवों में सबसे निम्न श्रेणी का देव माना जाता है। उस व्यन्तर देव की एक चप्पल में जितने दिव्य हीरे-जवाहरात हैं, उसकी तुलना में सारी दुनिया का धन कम पड़ जाए। क्या देवता की संपदा का कोई पार है? उस संपदा की कोई कीमत नहीं है। प्रश्न हुआ अनुत्तर विमान में कितने मन का मोती लटकता है। कहा गया-छत्तीस मण का मोती लटकता है। हीरा कितने कैरेट का मिलता है? इस दुनिया में कोहिनूर हीरे का मूल्य करोड़ों रुपए है। जहां मण वजन का हीरा हो जाए और
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