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आवश्यकता की अनुभूति और लाभ की संभावना ये दो तत्त्व रुचि का निर्माण करते हैं। रुचि निर्माण का तीसरा तत्त्व है रस। व्यक्ति का जिस चीज में रस होता है, उसके प्रति आकर्षण हो जाता है।
कन्याओं को विषयों में रस है, आसक्ति है इसीलिए भोग के प्रति आकर्षण बना हुआ है। नभसेना ने । इसी भाषा में कहा-'प्रियतम! विषय में जो रस है, भोगों में जो मिठास है, वह अन्यत्र कहां है?'
हमारा रस किसी दूसरे स्थान से बंधा हुआ है। यदि किसी व्यक्ति से कहा जाए-तुम एक घंटा तक आत्मा के बारे में चर्चा करो, आत्मा के विषय पर विमर्श करो। वह इस प्रस्ताव को मानने के लिए तैयार नहीं होगा। यदि सुनने के लिए तैयार हो भी जाए तो वह ध्यान से नहीं सुनेगा, आधी नींद के साथ सुनेगा। उस व्यक्ति से कहा जाए-आज टी.वी. पर ऐसा दृश्य आने वाला है, जिसमें युद्ध का वर्णन है, लड़ाई के रोमांचक दृश्य हैं। वह व्यक्ति इस बात को ध्यान से सुनेगा, टी.वी. पर आने वाले उस कार्यक्रम को बहुत गौर से देखेगा। उस समय उसे ऐसा अनुभव होता है कि दुनिया में नींद नाम की कोई चीज ही नहीं है। टी. वी. देखते समय या सिनेमा देखते समय कौन व्यक्ति नींद लेता है? उस समय आती हुई नींद उड़ जाती है। ऐसी स्थिति में कोई व्यक्ति नींद ले, यह अपवाद ही हो सकता है।
राजलदेसर के एक तत्त्वज्ञ श्रावक हुए हैं श्री चांदमलजी बैद। उनकी तत्त्व में रुचि थी। वे तत्त्व-चर्चा में सारी रात जगा देते, उन्हें नींद नहीं आती। सिनेमा देखना उनकी रुचि का विषय नहीं था। वे उसे निकम्मा कार्य समझते थे। इसलिए सिनेमाघर में फिल्म शुरू होते ही वे नींद में डूब जाते।
जहां रुचि होती है, वहां नींद नहीं आती। जहां रुचि नहीं होती है, वहां नींद आती है। यदि धर्मकथा सुनने में नींद आती है तो मान लेना चाहिए-धर्म की रुचि अभी जागृत नहीं हुई है। उपाध्याय यशोविजयजी ने बहुत अच्छा लिखा है
चतुरशीतावहो! योनिलक्षेष्वियं, क्व त्वयाऽऽकर्णिता धर्मवार्ता।
प्रायशो जगति जनता मिथो विवदते, ऋद्धिरससातगुरुगौरवार्ता।। आश्चर्य है! इस चौरासी लाख परिमित जीवयोनि में तूने धर्मवार्ता कहां सुनी? इस जगत् में प्रायः जनता ऋद्धि, रस और सुख के गुरु-गौरव से पीड़ित बनी हुई परस्पर विवाद कर रही है।
ऋद्धि, रस और सात-इन तीन विषयों में मनुष्य का आकर्षण है। ऋद्धि की चर्चा, धन की चर्चा चारों ओर है। व्यक्ति बाजार में जाए, पंचायत में चला जाए, कहीं भी चला जाए, धन-चर्चा का विषय बन जाएगा। एक व्यक्ति कहता है-अमुक व्यक्ति लखपति है। दूसरा व्यक्ति कहेगा-नहीं, उसके पास इतना नहीं है। एक व्यक्ति कहेगा-तुम्हें पता नहीं, अमुक व्यक्ति के दिवाला निकला हुआ है। चर्चा का एक मुख्य केन्द्र बिन्दु बना हुआ है धन, ऋद्धि या वैभव। ___ चर्चा का एक विषय बनता है भोजन। एक व्यक्ति कहता है-आज मैं अमुक बरात में गया था। वहां इतनी मिठाइयां बनी थीं, इतना बढ़िया भोजन बना था। दूसरा व्यक्ति कहता है-मैं जिस बरात में गया था वहां बहुत कम मिठाइयां परोसी गईं। भोजन भी अच्छा नहीं था और आतिथ्य भी अच्छा नहीं था। भोजन की चर्चा में सारा समय व्यर्थ चला जाता है। २२६
गाथा परम विजय की