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दो बातें होती हैं- प्रिय और हित या कल्याण | भारतीय चिन्तन में प्रेय और श्रेय इन दो पर बहुत विचार किया गया। एक है प्रेय का मार्ग और एक है श्रेय का मार्ग।
'प्रभव! प्रियता सब जगह अच्छी नहीं होती। बहुत बार प्रियता हानि भी पहुंचा देती है।'
लड़का बीमार था। वैद्य को दिखाया । वैद्य ने नाड़ी देखकर निदान किया। वैद्य बोला-'देखो एक बात का ध्यान रखना। एक महीने तक इसको मिठाई बिल्कुल मत खिलाना । यदि भूल से भी मिठाई खिलाई तो यह मर जायेगा।'
मां वैद्य के परामर्श के अनुसार औषध देने लगी। बच्चा रोज मिठाई की मांग करता । मां उसे नहीं देती । एक दिन घर में मोदक आए। उस युग में मोदक बहुत प्रिय मिठाई थी। बच्चा बिलखने लगा, बोला-'मां! आज तो लड्डू देना होगा।' बहुत कहा, बार-बार कहा फिर भी मां ने लड्डू नहीं दिया । आखिर बच्चा रोने लग गया। मां को करुणा आ गई। पसीज गई मां । प्रेम तो था ही । प्रेय बलवान बन गया, हित और श्रेय गौण हो गया। मां ने सोचा–एक मोदक खा लेगा तो क्या होगा? वैद्यजी को पता थोड़े ही चलता है। मां ने लड्डू दे दिया। बच्चे ने लड्डू खाया। बीमारी ऐसी थी कि खाते ही प्रगट हो गई। मां घबराई, वैद्यजी को बुलाया। वैद्य ने नाड़ी देखकर कहा-इसने कोई मिठाई खाई है।
मां ने कुछ टालमटोल जवाब दिया । वैद्य ने कहा--' नाड़ी बोल रही है। तुम सच - सच बताओ - इसने मिठाई खाई है या नहीं?'
मां बोली- 'हां, मिठाई तो खा ली, मैंने दे दी।'
'मैंने मनाही की थी।'
'हां, पर बच्चा बहुत रोने लग गया। मुझे प्रियता आ गई, प्रेम जाग गया और मैंने मोदक दे दिया।' वैद्य ने कहा——'अब मेरे पास कोई उपाय नहीं है। अब इसे कोई नहीं बचा सकता।'
कुछ क्षण बीते, बच्चा मर गया।
प्रिय और हित—इस पर भारतीय दर्शन में बहुत चिन्तन हुआ है। जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, वैदिक दर्शन, उपनिषद्-सबमें प्रेय और श्रेय का विवेचन है। प्रारंभ में तो प्रेय का मार्ग अच्छा लगता है, अंत में श्रेय का मार्ग।
भगवान महावीर ने कहा- अन्नाणी किं काही, किं वा नाहिई छेय पावगं ।
जो अज्ञानी है, वह यह नहीं जानता कि श्रेय क्या है और प्रेय क्या है ?
जम्बूकुमार बोला-' प्रभव! तुम श्रेय की ओर ध्यान दो। जब तक श्रेय को नहीं जानोगे तब तक कुछ नहीं होगा। '
एक गुरु के दो शिष्य। दोनों गुरु की सेवा करना चाहते थे पर श्रेय का ज्ञान दोनों को नहीं था। दोनों ही उदंड प्रकृति के थे। केवल गुरु के प्रति अनुराग था । व्यक्ति श्रेय को नहीं जानता है तो प्रियता भी हानिकर हो जाती है।
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गाथा
परम विजय की
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