Book Title: Gatha Param Vijay Ki
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 359
________________ V N गाथा परम विजय की विरत बिहूणी जे घणी, निश्चै निरफल जाय । मन ऊब्यो है मांहरो, मत दीज्यो अंतराय ।। मां! व्रत के बिना एक-एक पल विफल जाती है, एक-एक घड़ी फालतू जाती है, अर्थहीन बन जाती है।' 'मां! मेरे मन में एक तड़प लग गई है। जो तड़प लग जाती है, वह पूरी नहीं होती है तो बड़ी छटपटाहट और बेचैनी होती है। ' ‘मां! कृपा करो। अब अंतराय मत देना। एक बार मैंने तुम्हारी बात मान ली, अनिच्छा से मान ली पर अब कोई ऐसी बात मत कहना, जिससे अंतराय आए ।' 'मां ! ! तुम जानती हो कि अंतराय अच्छी नहीं होती । धर्मान्तराय-धर्म की अंतराय देना, धर्म में विघ्न डालना तो बिल्कुल अच्छा नहीं होता क्योंकि धर्म ही तो कल्याणकारी है। जहां आदमी सब जगह विफल होता है, वहां धर्म की शरण में सफल होता है। ' कल ही एक भाई आया, उसने कहा- 'मैंने सब जगह उपचार करा लिए। डॉ. कहते हैं - हमारे पास कोई इलाज नहीं है। बस अब तो एक धर्म ही शरण है और इस शरण में आये हैं।' उन्होंने कहा- 'इस शर से हमारा काम हो गया, सफलता भी मिल गई। धर्म के प्रभाव से बड़ी विचित्र घटनाएं होती हैं। अंतिम शरण है धर्म। जहां और शरण काम नहीं देती, सब अशरण बन जाते हैं वहां धर्म की शरण, अपने मनोबल की शरण, अपनी आस्था शरण काम देती है। जम्बूकुमार बोला- 'मां ! तुम महावीर की वाणी पर ध्यान दो। जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिणियत्तइ । अहम्मं कुणमाणस्स, विफला जंति राइओ ।। रात चली जा रही है। जो रात बीत गई, वह लौटकर कभी नहीं आती। जो आदमी अधर्म करता है, उसकी रातें फालतू चली जाती हैं।' जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिणियत्त । सुहम्मं कुणमाणस्स सफला जंति राइओ ।। ‘मां! जो रात चली जाती है वह लौटकर नहीं आतीं किन्तु जो आदमी धर्म का आचरण करता है, उसकी हर रात सफल होती है, हर घड़ी सफल होती है, हर पल सफल होता है। उसका कोई भी पल विफल नहीं होता।' 'मां! धर्म के बिना, संयम के बिना दिन और रात बीतती है तो उसका क्या अर्थ होता है?' यस्य धर्मविहीनानि दिनान्यायांति यांति च । स लोहकारभ्रस्त्रेव श्वसन्नपि न जीवति ।। 'मां! जिस आदमी का दिन धर्म के बिना बीतता है, वह सांस तो लेता है पर जीता नहीं।' क्या यह संभव है कि व्यक्ति सांस तो ले और जिन्दा न हो। जीवन का लक्षण क्या है ? कोई भी जीवन की परीक्षा करते हैं तो सबसे पहले रुई का फोआ नाक के छिद्र पर लगाते हैं और देखते हैं-सांस आ ३६१

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