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जंबू का सुधर्मा स्वामी के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध रहा। अब जंबू आचार्य बन गये, केवली बन गये। जम्बूकुमार की गृहवास से जो चिरकालीन लालसा थी-मैं केवली बनूं और आत्मा का साक्षात्कार करूं, वह आकांक्षा कृतार्थ हो गई। लक्ष्य पूरा हो गया तो सब कुछ मिल गया। जम्बूकुमार जिस लक्ष्य को लेकर चले थे, उनके सामने जो साध्य था, वह सिद्ध हो गया। साध्ये सिद्धे सिद्धमेवास्ति सर्वं जब साध्य सिद्ध होता है तो सब कुछ सिद्ध हो जाता है। लक्ष्य पूरा हुआ और सब काम हो गया। ___ जम्बूकुमार का गृहवास का जीवन छोटा था किन्तु वह घटना बहुल रहा। फिर बीस वर्ष का मुनि जीवन साधना का जीवन रहा। वे चवालीस वर्ष तक केवली रहे। केवली होने के बाद जंबू स्वामी ने क्या-क्या किया? इसका ज्यादा वर्णन सूत्र में ग्रंथकारों ने नहीं लिखा। शायद परम्परा भी नहीं थी। अगर लिखते तो जंबू स्वामी का जीवन बहुत महत्त्वपूर्ण बनता। उस समय बहुत सारी घटनाएं घटित हुईं। सम्राट श्रेणिक का देहावसान हो गया था। कुणिक राज कर रहा था। उदायी का भी राज्य आ गया था। चण्डप्रद्योत भी नहीं रहा। सारी राज्य सत्ताएं बदल गईं। जंबू स्वामी के साथ किन-किन राजाओं का संबंध रहा, किन-किन श्रावकों का संबंध रहा, कौन-कौन प्रमुख श्राविकाएं हुईं? कौन प्रमुख साधु और साध्वियां हुईं इनका इतिहास प्राप्त नहीं है। लिखा ही नहीं गया। शायद लिखने की बात ही नहीं रही। जब ज्ञान अतीन्द्रिय होता है, उस समय लोग उसमें डूबे रहते हैं। वे समझते हैं-अभी कोई जरूरत नहीं है। यदि वे भविष्य के लिए सोचते तो भावी पीढ़ी के लिए जरूर कुछ न कुछ लिखते पर लिखना शायद आवश्यक ही नहीं समझा।
हम यह मान लें कि केवली होने के बाद जंबू स्वामी का जो ४४ वर्ष का जीवन काल रहा, वह बिल्कुल अज्ञात जैसा रहा। साधना काल भी पूरा ज्ञात नहीं है। बीस वर्ष के साधनाकाल में क्या-क्या साधनाएं कीं। हम अनुमान से उसका आकलन कर सकते हैं पर लिखा हुआ नहीं मिलता।
एक होता है केवली और एक होता है श्रुतकेवली। जब केवलज्ञानी नहीं रहता तब श्रुतकेवली ही सबसे बड़ा ज्ञानी होता है। चौदह पूर्वो का ज्ञाता श्रुतकेवली कहलाता है।
दो परम्पराएं रहीं महावीर केवली, सुधर्मा केवली और जंबू केवली। जंबू के बाद फिर श्रुतकेवली की परम्परा शुरू होती है। यह माना जाता है-जंबू स्वामी का निर्वाण हुआ और उनके साथ कुछ चीजें विच्छिन्न हो गईं। सामान्य बोलचाल की भाषा में कहते हैं-जंबू स्वामी मोक्ष का दरवाजा बंद कर गए। उनके साथ दस विशेष बातें, जो जैन परम्परा में चालू थीं, विच्छिन्न हो गईं
१. मणपज्जव णाणे-जंबू स्वामी के निर्वाण के बाद मनःपर्यवज्ञान सम्पन्न हो गया। किसी को मनःपर्यवज्ञान नहीं हुआ। दूसरे के मन की बात को जानने का ज्ञान बहुत निर्मल होता है। जिससे किसी संज्ञी मनुष्य, प्राणी के मन के भावों को जान लिया जाता है, चाहे वह कहीं भी बैठा है, वह मनःपर्यवज्ञान विच्छिन्न हो गया।
२. परमोहि णाणे-परम अवधिज्ञान विच्छिन्न हो गया। अवधिज्ञान सामान्य भी होता है, अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना भी होता है। पूरे लोक में रूपी द्रव्यों को जानने की क्षमता वाला ज्ञान भी होता है, वह परमावधि ज्ञान भी विच्छिन्न हो गया। ३६६
गाथा परम विजय की