Book Title: Gatha Param Vijay Ki
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 396
________________ मणपरमोहिपुलाएआहारगखवगउवसमे कप्पे। संजमतिय केवली सिज्झणाए जम्बूम्मि वुच्छिन्ना।। किसी का थोड़ा सा धन चला जाए तो व्यक्ति कहता है कि मेरा इतना चला गया। जैन शासन की कितनी सिद्धियां विच्छिन्न हो गईं। महाभारत का युद्ध हुआ। महाभारत काल में बड़े-बड़े विद्या के जानकार मर गये। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध काल में भारत विद्या और विकास की दृष्टि से दरिद्र बन गया। ऐसा लगता है-जम्बू स्वामी के निर्वाण के बाद भी कुछ ऐसी स्थिति बनी कि काफी सिद्धियां, शक्तियां विलुप्त हो गईं। __हम जंबू स्वामी के निर्वाण को क्या मानें? ऐसे तो निर्वाण होना हर्ष का विषय है। मोक्ष में चले गये, मोक्ष हो गया पर पीछे क्या कर दिया? जंबू स्वामी स्वयं समझे, आठ नवपरिणीता बहुओं को समझाया, पांच सौ चोरों को समझाया, माता-पिता को समझाया और बड़ी सेना बनाकर दीक्षित हुए, साधना की, केवलज्ञान पाया। प्रभव को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। पूर्वज्ञान की जो परम्परा भगवान पार्श्वनाथ के शासन काल से चली आ रही थी, उस चौदह पूर्व की परम्परा को चालू कर दिया। अपने उत्तराधिकारी प्रभव स्वामी को पहला श्रुतकेवली बना दिया। इतने अच्छे काम किये पर यह क्या किया? इतनी शक्तियां थीं, इतनी जो विशेष लब्धियां थीं, सिद्धियां थीं, सबके दरवाजे एक साथ बंद कर दिए। लोग कहते हैं मोक्ष का दरवाजा बंद कर दिया। अरे! मोक्ष की बात जाने दो। कोई अभी न जाये, आगे तो जायेगा। जो एक बार सम्यक्दृष्टि बन गया, उसे कभी न कभी तो जाना है। पर जो बातें आज काम की थीं, उन सबके दरवाजे बंद कर दिये। हम किसको कहें? वे तो उत्तर देंगे नहीं। सुनेंगे भी नहीं। जानते तो हैं कि क्या कह रहे हैं पर सुनेंगे नहीं, क्योंकि सुनना कान का काम है। कान उनके हैं नहीं। उत्तर देना जीभ का काम है। जीभ उनके पास है नहीं। न तो सुनेंगे, न उत्तर देंगे किन्तु जानेंगे जरूर। ___हमें ही जानना है कि ऐसा क्यों होता है? यहां काल लब्धि को सामने रखना होगा। काल भी एक बड़ा तत्त्व है। कोई भी कार्य होता है उसके साथ पांच बातें अनिवार्य होती हैं-काल, स्वभाव, नियति, पुरुषार्थ और कर्म। इन पांचों पर विचार करना जरूरी है। इनमें काल और क्षेत्र का बड़ा महत्त्व है। "खेत्तं पप्प कालं पप्प'-क्षेत्र और काल को छोड़कर घटना की व्याख्या नहीं हो सकती। क्षेत्र का बड़ा प्रभाव होता है। एक क्षेत्र पर कोई आदमी गया, जाते ही मन प्रसन्न हो जाता है। एक ऐसे स्थान पर चला गया, वहां सोओ तो नींद नहीं आती, बैठो तो मन में उदासी बेचैनी, किसी काम में मन नहीं लगता। यह है क्षेत्र का प्रभाव। ऐसे ही काल का भी प्रभाव होता है। एक क्षण ऐसा होता है कि आदमी की शक्तियां जाग जाती हैं और एक समय ऐसा आता है कि आदमी की शक्तियां सो जाती हैं, कोई काम नहीं होता। क्षेत्र और काल बहुत प्रभावित करते हैं। आइन्स्टीन ने सापेक्षवाद में इन दो तत्त्वों का बड़ा प्रयोग किया था। स्पेस और टाइम इनके बिना किसी चीज की व्याख्या नहीं की जा सकती। जैन दर्शन में हजारों वर्ष पहले द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-ये चार दृष्टियां भगवान महावीर ने बतलाईं। इन चारों को समझे बिना किसी घटना की ठीक व्याख्या नहीं की जा सकती। किसी घटना के मर्म को समझना है तो इन चारों को समझना पड़ेगा। जैन आचार्यों ने इन पर बहुत सूक्ष्म विचार किया। गाथा परम विजय की ३९८

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