________________
-
PAR
NAGAROO
Modekar
BHARA
PRARY
6
ROMAMANAS
IMA
CAMERapmanmHEREness
PRAMANARTAINition
गाथा परम विजय की
मां ने पूछा-'बोलो प्रभव! तुम क्या चाहते हो?'
'कुछ भी नहीं चाहता।' 'धन चाहते हो तो ले जाओ।' 'नहीं बिल्कुल नहीं चाहता।" 'तो फिर क्या चाहते हो?'
'मां! जम्बुकुमार के पीछे-पीछे चलना चाहता हूं।'
मां-पिता ने सोचा-क्या यह कोई सपना है? क्या कोई माया है? इंद्रजाल
है? इंद्रजाल में ऐसा होता है कि जो नहीं दिखने का दृश्य है, वह दिखने लग जाता है। क्या किसी ने सियालसिंगी फेर दी है? जो तंत्र को
जानने वाले हैं वे जानते हैं-सियालसिंगी फेरो तो सब वश में हो जाए। जैसे गंधहस्ती के आने पर सारे हाथी निर्वीर्य हो जाते हैं, वश में हो जाते हैं, वैसे ही सियालसिंगी से लोग वश में हो जाते हैं। मैंने भी सियालसिंगी को देखा है। एक तांत्रिक मुझे दिखाने के लिए लाया भी था। बड़ा महत्त्व माना जाता है तंत्र शास्त्र में। ऐसा लगता है जम्बूकुमार ने सियालसिंगी फेर दी है सब पर। सबके सब उसके वश में हो गए हैं, सबकी एक ही आवाज है, जैसे कोई घुट्टी पिला दी है। जो बात जम्बूकुमार बोल रहा है वही बात आठों बहुएं बोलने लग गईं, वही बात यह प्रभव बोलने लग गया और वही बात ये सारे चोर बोल रहे हैं। चारों तरफ से यही आवाज आ रही है-साधु बनना है, साधु बनना है, आत्मा को देखना है।
__ अब हम केवल दो बचे हैं। हम क्या करें? एक द्वन्द्व खड़ा हो गया, मन में आंदोलन हो गया। दिमाग कंपित-सा हो गया। वे दो-चार मिनट अवाक् खड़े रहे।
जम्बूकुमार बोला-'मां! पिताश्री! जल्दी करें। घड़ी बीत रही है। हमें सुधर्मा स्वामी के पास जाना है। मां! आप हमें आज्ञा दें और बहुत आनंद से रहें।'
मां ने कहा-'बेटा! मां-पिता को छोड़कर सब जा रहे हो?' 'मां! क्या करूं? मेरी विवशता है। मैंने इस सत्य को देख लिया है
सर्वे पितृभातृपितृव्यमातृ-पुत्रांगजास्त्रीभगिनीस्नुषात्वं।
जीवाः प्रपन्नाः बहुशस्तदेतत् कुटुम्बमेवेति परो न कश्चित्।। आज सब जगह मुझे माता-पिता ही दिखाई दे रहे हैं। मैं क्या करूं? अब मेरी दुनिया बदल गई है। अब मैं अपना निश्चय नहीं बदल सकता। आप सुखपूर्वक घर में रहें। आपकी सारी व्यवस्था होगी। कोई
३६६
CA
maitra