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गाथा परम विजय की
‘जा जा हविज्ज जयणा'-जितनी-जितनी यतना उतनी-उतनी सफलता, जितना-जितना प्रयत्न उतनी उतनी सफलता। कोई भी बड़ा लक्ष्य शिथिल प्रयत्न से प्राप्त नहीं होता। प्रयत्न कम है, मन भी कमजोर है ढीला-ढाला है और बड़ा लक्ष्य पाना चाहें तो यह कभी संभव नहीं होता। बहुत तीव्र और गहन प्रयत्न होता है तब लक्ष्य की सिद्धि मिलती है। जब तक संकल्प मजबूत नहीं होता, मनोबल दृढ़ नहीं होता
और उसके अनुरूप प्रयत्न भी तीव्रतम नहीं होता, कार्य की सिद्धि नहीं होती। ___जम्बूकुमार के सामने लक्ष्य था परम विजय का। उनकी यह स्पष्ट अवधारणा थी-आत्म विजय ही परम विजय है। उनका संकल्प था-मुझे आत्मा का साक्षात्कार करना है, कैवल्य को प्राप्त करना है।
मुनि बनने के बाद उन्होंने आचार्य सुधर्मा से लक्ष्य की पूर्ति का साधन जान लिया। वे उसमें लग गये।
एक साधना होती है कालबद्ध और एक साधना होती है कालातीत। कालबद्ध साधना है-साधक एक घंटा बैठा, ध्यान कर लिया। कोई दो घंटा, तीन घंटा बैठ गया। आखिर सीमा है। एक सीमा के बाद उठता है, ध्यान को सम्पन्न कर देता है। एक घंटा स्वाध्याय किया और स्वाध्याय को सम्पन्न कर दिया। ये सब कालबद्ध, समयबद्ध साधनाएं हैं। निश्चित समय कर दिया-इतने समय तक मैं अमुक साधना का प्रयोग करूंगा। समय पूरा हुआ, साधना पूरी हो गई।
एक साधना होती है कालातीत। समय का कोई प्रतिबंध नहीं होता। चौबीस घंटा निरन्तर प्रतिपल ध्यान चलता है, उसका नाम है भाव क्रिया। भाव क्रिया हमारी निरंतर होने वाली साधना है। भाव क्रिया यानी जो भी काम करें, जागरूकता से करें, जानते हुए करें और वर्तमान में जीने का अभ्यास करें। यह साधना चौबीस घंटा हो सकती है। साधक नींद लेता हुआ भी जाग सकता है। ___ आचारांग सूत्र का एक बहुत सुन्दर वचन है-सुत्ता अमुणिणो सया-अज्ञानी सदा सोया रहता है। चाहे दिन है, दोपहरी है, आंख खुली है फिर भी वह सोया हुआ है। मुणिणो सया जागरंति-मुनि सदा जागता है। रात को वह नींद ले रहा है तो भी जागता है। दिन में जागते हुए सोना और रात में नींद लेते हुए जागना-यह बहुत मर्म का सूत्र है।