Book Title: Gatha Param Vijay Ki
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 390
________________ ojpuri राजा ने कहा-अब युद्ध की तैयारी बंद करो। जिसके पास इतना बुद्धिमान मंत्री है हम उसको कभी जीत नहीं सकते।' प्रयोगशाला में जो होता है वह सारी शक्ति हमारे भीतर है पर वह तब विकसित होती है जब यह भेद-विज्ञान की बात आ जाए। भेद-विज्ञान करें अलग-अलग करते चले जाएं। गेहूं को अलग और कंकड़ को अलग। चावल को अलग और कंकड़ को अलग। वैसे ही पदार्थ को अलग और आत्मा को अलग। अलग करते चले जाओ, इसका नाम है भेद-विज्ञान। जंबू स्वामी को सुधर्मा स्वामी ने भेद-विज्ञान के अभ्यास का पहला पाठ दिया-'जंबू! तुम आत्मा को देखना चाहते हो, आत्मा का साक्षात्कार करना चाहते हो तो यह अभ्यास पुष्ट करो मैं शरीर नहीं हूं। शरीर अलग है और मैं अलग हूं। मैं श्वास नहीं हूं। श्वास अलग है और मैं अलग हूं। भूख लग रही है। तुम सोचो मैं भूख नहीं हूं। भूख अलग है और मैं अलग हूं। शरीर में कोई पीड़ा आये, व्याधि आये तो अनुभव करो कि मैं रोग नहीं हूं। रोग अलग है और मैं अलग हूं।' ____ आचार्य विनोबाभावे ने एक अनुभव की बात लिखी, उन्होंने लिखा मैं जब छोटा बच्चा था, सिरदर्द बहुत होता था। सिरदर्द की सब दवाइयां ली पर कोई दवाई लगी नहीं। तब मैंने एक प्रयोग शुरू कर दिया। मैं एकान्त में जाकर बैठ जाता, सिर को पकड़ लेता, उसे हिलाता रहता और बोलना शुरू कर देता–'मैं सिर नहीं हूं ....मैं सिर नहीं हूं।' विनोबा ने लिखा-इस प्रयोग का बड़ा आश्चर्यकारी परिणाम आया। दस मिनट में ही सिरदर्द समाप्त हो गया। जिस व्यक्ति ने भेद-विज्ञान की विद्या सीख ली, अपने आपको शरीर से अलग करना सीख लिया, उसके एक चामत्कारिक स्थिति का निर्माण होता है। जब-जब व्यक्ति आत्मा में जाता है, शरीर से अलग होता है तब-तब बीमारियां, दुविधाएं, चिन्ताएं, कुण्ठाएं, तनाव-सब नीचे रह जाते हैं और व्यक्ति स्वयं ऊपर आ जाता है। यह भेद-विज्ञान अध्यात्म का पहला पाठ है। यह पहला पाठ जंबू स्वामी को सुधर्मा ने दे दिया। जंबू स्वामी जैसे योग्य व्यक्ति और योग्य मुनि, जिनके मन में केवल एक ही लालसा है-आत्मा का साक्षात्कार। वे उस धुन में लग गये। लक्ष्य स्पष्ट हो गया। साधन मिल गया और प्रयत्न चालू हो गया। गाथा . परम विजय की ३६२

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