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चाहे वह जीवनभर भी काम न आए। यह जो संग्रह की मनोवृत्ति है, पदार्थ से चिपकने की जो मनोवृत्ति है, यह आर्तध्यान पैदा करती है।
रौद्रध्यान क्रूरता का ध्यान है। क्रूरता, हिंसा जैसे आतंकवाद चलता है किसी को बिना मतलब मार दिया, हत्या कर दी या किसी को लूट लिया, किसी का अपहरण कर लिया, चोरी कर ली। धन का गबन कर लिया। यह हिंसानुबन्धी, स्तेयानुबन्धी रौद्रध्यान है । जिस व्यक्ति को आत्मा का साक्षात्कार करना है उसे इन दोनों से बचना पड़ता है।
सुधर्मा स्वामी ने जंबू स्वामी को तीसरा मार्ग बताया- 'अगर आत्मा का साक्षात्कार करना चाहते हो तो तुम्हें भेद-विज्ञान का अभ्यास करना होगा। जब तक भेद - विज्ञान का अभ्यास नहीं होता, आत्मा का साक्षात्कार नहीं हो सकता ।'
पदार्थ और चेतना, पदार्थ और आत्मा दो हैं। मैं रोटी खा रहा हूं। रोटी अलग है और रोटी खाने वाला अलग है। मैं पानी पी रहा हूं। पानी अलग है और पानी पीने वाला अलग है। इससे भी आगे जाएं - मैं श्वास ले रहा हूं। श्वास अलग है और श्वास लेने वाला अलग है। श्वास में तीन बन जाते हैं - एक श्वास, एक श्वास प्राण और एक श्वास को लेने वाला। श्वास है ऑक्सीजन वायु, जो हम बाहर से लेते हैं। श्वास को लेने वाली हमारी शक्ति है, उसका नाम है श्वास प्राण । जिनको पचीस बोल याद हैं, वे जानते हैं - दस प्राणों में एक प्राण है श्वासोच्छ्वास प्राण । श्वास अलग है, श्वासप्राण अलग है और श्वास को लेने वाला व्यक्ति अलग है। इन तीनों के भेद को समझना भेद-विज्ञान है।
दो पद्धतियां होती हैं - एक संश्लेषण की और एक विश्लेषण की। भेद-विज्ञान में विश्लेषण करना होता है - मैं श्वास नहीं हूं। मैं श्वास ले रहा हूं पर मैं श्वास नहीं हूं। जो शक्ति श्वास ले रही है, वह श्वासप्र है। मैं श्वास प्राण भी नहीं हूं। वह भी एक मध्य का रास्ता है। मैं चेतना हूं, द्रष्टा हूं, देखने वाला हूं-श्वास आ रहा है, श्वास जा रहा है। इसका द्रष्टा, साक्षी मैं हूं पर मैं श्वास नहीं हूं, श्वास प्राण नहीं हूं। यह भेदविज्ञान की पद्धति विश्लेषणात्मक पद्धति है।
विज्ञान की पद्धति विश्लेषणात्मक है - एक - एक चीज को अलग कर देना। एक चीज गई लेबोरेट्री में, प्रयोगशाला में। वहां उसका रासायनिक विश्लेषण होता है। इसमें क्या-क्या है - यह विश्लेषण आजकल प्रयोगशाला में होता है। प्राचीनकाल में कुछ ऐसे लोग थे जिनकी जीभ प्रयोगशाला बनी हुई थी। उस समय इंद्रियों का इतना आश्चर्यकारी विकास था कि आज भुला दिया गया। जीभ बहुत बड़ी प्रयोगशाला है। आगम के व्याख्या ग्रंथों में एक घटना का उल्लेख है।
एक राजा ने सोचा-कौशल के राजा को मुझे जीतना है। जीतने का लक्ष्य होता है तो पूरा ध्यान देना होता है, विचार करना पड़ता है। उसने पहले ध्यान दिया कि उसके पास कोई अनुभवी मंत्री है या नहीं ? अगर मंत्री अनुभवी है और सेनापति शक्तिशाली है तो जीतना बड़ा मुश्किल है। राजा ने सोचा- पहले परीक्षा कर लूं। उसने दूत भेजा, दूत आया, नमस्कार किया। कौशल नरेश ने पूछा- 'कहां से आए हो?'
दूत ने कहा- 'महाराज ने इस संदेश के साथ भेजा है कि तुम कौशल नरेश के पास जाओ, यह सुरमा
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गाथा
परम विजय की
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