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या-'आज मार्ग में एक साधु मिला। मैंने उसकी वंदना की। आप सब मुसकरा रहे थे, हंस रहे थे। मैं नना चाहता हूं कि हंसी का कारण क्या है?'
अभयकुमार ने यह पूछा तो सब घबरा गये। क्योंकि वह बड़ा प्रभावशाली था, इतना बुद्धिमान था कि ब उसका लोहा मानते थे। यह मानते थे कि अभयकुमार प्रसन्न है तो भगवान भी प्रसन्न हैं। अभयकुमार राज है तो कोई बचाने वाला नहीं है। एकछत्र अनुशासन चलता था। एक सभासद बोला-'महामंत्री! क्षमा रें, गलती हुई है।'
'क्यों हुई?'
'हमारे मन में आया कि कल तक तो यह लकड़हारा था, लकड़ियां काटकर लाता और बेचता। आज साधु का वेश पहन लिया। आप उसके सामने जाकर इस प्रकार झुकते हैं। हमें यह देखकर हंसी आ गई।'
बात को मोड़ देते हुए अभयकुमार बोला-'आज मैं एक आदेश देना चाहता हूं। राज्यसभा या मंत्री परिषद् का कोई सदस्य कल से अग्नि का सेवन नहीं करेगा। कच्चा पानी नहीं पीयेगा। कच्चे पानी का उपयोग नहीं करेगा। ब्रह्मचारी रहेगा।'
'कब तक....?' 'जब तक पुनः आज्ञा न हो तब तक यह आदेश दिया जाता है।'
सब घबराए, बड़ी समस्या हो गई। जो खुले रहने वाले थे, उन्हें नियम में बांध दिया। एक दिन भी बड़ी मुश्किल से बीता। दूसरे दिन आए और क्षमायाचना की-आप क्षमा करें। हमसे तो रहा नहीं जा सकता।'
महामंत्री ने कहा-'देखो, यह बहुत लाभ कमाने का अवसर है। जो जीवन भर कच्चे पानी का आसेवन नहीं करेगा, अग्नि का सेवन नहीं करेगा और ब्रह्मचारी रहेगा उसे मैं तीन करोड़ सोनैया दूंगा।'
दूसरे दिन फिर आए, बोले-'महामंत्री! क्षमा करें। हम नहीं रह सकते।' 'अरे! तीन करोड़ सोनैया मिल रहा है?' 'चाहे पांच करोड़ मिल जाए, हम तो रह नहीं सकते। बिल्कुल संभव नहीं है हमारे लिए।'
महामंत्री अभयकुमार बोला-तुम कहते हो कि यह भिक्षु लकड़हारा था, गरीब आदमी था, लकड़ियां बेचकर रोटियां खाता था, आज साधु बन गया। इसने क्या त्याग किया? सभासदो! इसने कम से कम तीन करोड़ सोनैया का तो त्याग किया है, जो तुम नहीं कर सकते। जो साधु अहिंसक बनता है, सत्यव्रती, अचौर्यवादी, ब्रह्मचारी, अपरिग्रही बनता है उसने कम से कम पांच करोड़ सोनैया का तो त्याग कर ही दिया है। तुम ऐसे त्यागी का मखौल करते हो?'
सबका मन बदल गया, सबने पश्चात्ताप के स्वर में कहा-'हमने गलती की है। आप क्षमा करें। हम पर यह प्रतिबंध न लगाएं। नहीं तो जीना दूभर हो जायेगा।' ___ यही प्रश्न सुधर्मा की सभा में प्रस्तुत हो गया ये तो चोर हैं। ये क्या साधु बनेंगे? चोरों को साधु बना रहे हैं। ये क्या साधना करेंगे? क्या दीक्षा के लिए कोई भला आदमी मिलता नहीं है? कोई साहूकार मिलता नहीं है? ३८२
गाथा परम विजय की