Book Title: Gatha Param Vijay Ki
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 384
________________ गाथा परम विजय की सफलता के लिए तीन बातें आवश्यक होती हैं। सबसे पहली बात है-लक्ष्य का निर्धारण। एक लक्ष्य निश्चित करना चाहिए कि मुझे कहां पहुंचना है। जब तक लक्ष्य स्पष्ट नहीं होता, कुछ भी नहीं होता। क्या बनना है, कहां जाना है, कहां पहुंचना है-यह लक्ष्य स्पष्ट हो तो आगे विकास हो सकता है। आजकल बहुत बच्चे प्रारंभ में अपना लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं। कोई कहता है-मुझे डॉक्टर बनना है। कोई कहता है-मुझे इंजीनियर बनना है, मुझे व्यापारी बनना है। उनकी उस दिशा में फिर गति हो जाती है। बिना लक्ष्य के कुछ नहीं होता। जब पता ही नहीं है कि कहां जाना है तो विकास कैसे होगा? लक्ष्य प्राप्त कैसे होगा? दूसरी बात है-लक्ष्य की पूर्ति के साधन क्या हो सकते हैं? अलग-अलग लक्ष्य की पूर्ति के साधन अलग-अलग होते हैं। लक्ष्य है डॉक्टर बनना और पढ़ रहा है कॉमर्स कॉलेज में तो डॉक्टर कैसे बनेगा? डॉक्टर बनना है-यह लक्ष्य बना लिया तो उसे मेडिकल कॉलेज में भरती होना होगा। बनना है इंजीनियर और भरती हो गया मेडिकल कॉलेज में। यह गलत साधन हो गया। लक्ष्य की पूर्ति के अनुरूप साधन होना चाहिए। तीसरी बात है प्रयत्न। उसके अनुरूप प्रयत्न भी होना चाहिए। लक्ष्य तो बहुत बड़ा बना लिया और प्रयत्न बहुत छोटा है तो व्यक्ति वहां तक पहुंच नहीं सकता। जितना बड़ा लक्ष्य है उतना ही बड़ा प्रयत्न चाहिए। लक्ष्य, लक्ष्य पूर्ति का साधन और लक्ष्य पूर्ति के लिए प्रयत्न तीनों मिलते हैं तो आदमी निश्चित ही एक दिशा में आगे बढ़ सकता है, गति कर सकता है। लक्ष्य छोटा नहीं बनाना चाहिए। जो छोटा लक्ष्य बनाता है, वह रुक जाता है। लक्ष्य तो बड़ा हो, जिससे लंबे समय तक उसकी साधना चले। लक्ष्य बनाया कि जैन विश्व भारती की परिक्रमा करना है तो वह लक्ष्य एक घंटा में पूरा हो गया। लक्ष्य इतना बड़ा हो कि जीवन भर उसकी प्राप्ति का प्रयत्न चलता रहे। उसमें से विकास निकलता है, सफलता मिलती है। ३८६

Loading...

Page Navigation
1 ... 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398