________________
nm
आभामंडल विशेषज्ञ ने कहा-'आपका आभामंडल इतना प्रभावशाली है कि आसपास में बैठने वाला व्यक्ति तोष का अनुभव करता है। चाहें आप एक शब्द भी न बोलें तो भी उसको बहुत शांति का अनुभव o होता है।' _ जिस व्यक्ति का आभामंडल पवित्र होता है उसके पास आने पर मन का वैर, विरोध, शंकाएं, कुशंकाएं, दुर्भावनाएं सब समाप्त हो जाती हैं। इसीलिए तो कहा गया जहां तीर्थंकर का, केवली का आभामंडल होता है वहां सांप और नेवला, बकरी, हिरण और सिंह सब पास में आकर बैठ जाते हैं, वैर भाव भूल जाते हैं। शेर बैठा है, खरगोश या हिरण आकर शेर पर चढ़ता है तो भी वैर नहीं होता। खाने की बात मन में नहीं आती। यह परिवर्तन कैसे होता है? उस समय दिमाग का सारा चिन्तन बदल जाता है। जो चिन्तन की उर्मियां, तरंगें उठती हैं वे शांत होती हैं। मन में कोई वैर का भाव ही नहीं आता। यह आभामंडल का, लेश्या का परिवर्तन है। ___ सुधर्मा स्वामी ने देखा ये कभी चोर थे पर अब इनका आभामंडल एकदम बदल गया है। ये सब योग्य हैं।
___ सुधर्मा स्वामी ने इस आगम सूक्त का उच्चारण किया होगा-करेमि भंते! सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कायेणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।
दीक्षा के लिए सन्नद्ध ५२८ व्यक्तियों ने इस आगम-सूक्त का पुनः उच्चारण किया। सावध योग का तीन करण तीन योग से प्रत्याख्यान किया और....सब मुनि बन गए, सुधर्मा के शिष्य बन गये।।
भगवान महावीर ने एक प्रणाली बनाई थी नवदीक्षित के शिक्षण की। नवदीक्षित मुनि शैक्ष कहलाता है। शैक्ष को सबसे पहले सिखाया जाता है व्यवहार-बोध। भगवान महावीर ने स्वयं श्री मेघकुमार को यह बोध कराया था-देवाणुप्पिया एवं चरियव्वं एवं चिट्ठीयव्वं एवं निसियव्वं एवं भुंजियव्वं एवं भासियव्वं।
देवानप्रिय! तुम्हें ऐसे चलना है, ऐसे खड़ा होना है। ऐसे बैठना है, ऐसे सोना है, ऐसे खाना है, ऐसे बोलना है। चलना, खड़ा होना, बैठना, सोना, खाना व बोलना ये छह बातें आरम्भ में सिखाई जातीं।
आज तो माता-पिता सोचते हैं कि बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में भेज दिया जाये। वे उसे वहां भेज कर निश्चिंत हो जाते हैं, फिर वे पता ही नहीं करते कि लड़का क्या कर रहा है, क्या खा रहा है! कैसी रुचि है? कैसा आचरण है? इस ओर ध्यान देना जरूरी नहीं समझते। इन दिनों बहुत माता-पिता, परिवार वाले आए, पूछा-'कभी बच्चों को यह बताया कि नवकार मंत्र गिनना है।' बोले-'नहीं, यह तो नहीं बताया।'
उसके विकास की दृष्टि से और सब चिंता करते हैं। क्या करेंगे? कहां पढ़ेंगे? आजीविका की सारी चिंता करते हैं पर उनके जीवन की चिंता नहीं करते।
जैन धर्म में शिक्षण की यह प्रशस्त परम्परा रही। नवदीक्षित मुनि मेघकुमार को स्वयं भगवान महावीर ने सिखाया देवानुप्रिय! तुम्हें इस प्रकार संयमपूर्वक कार्य करना है। सुधर्मा स्वामी ने सब साधुओं को यह ३८४
गाथा परम विजय की