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गाथा परम विजय की
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काटकर लाता था। आज साधु बन गया।' वह मुनि इन वाक्यों को सुन परेशान हो गया। उसने अपनी समस्या गुरुदेव के सामने प्रस्तुत की। आचार्यश्री ने अभयकुमार से कहा-'यह लकड़हारा मुनि बन गया। बड़ा अच्छा साधु है किन्तु लोग इसकी अवज्ञा करते हैं, अवहेलना करते हैं। इसका उसके मन पर थोड़ा असर भी हो जाता है। हम यहां से विहार कर दें, यहां न रहें।'
जानकार क्षेत्र में रहने में थोड़ी कठिनाई होती है। इसीलिए कहा गया-परिचित क्षेत्र में जल्दी नहीं जाना चाहिए। अतिपरिचित क्षेत्र में तो बिल्कुल नहीं जाना चाहिए।
अतिपरिचयादवज्ञा कस्य नो मानहानिः अति परिचय की स्थिति में किसकी अवज्ञा नहीं होती, किसकी मानहानि नहीं होती?
चांद रात को रहे तो ठीक है। दिन में रहता है तो कोरा बादल का टुकड़ा-सा बन जाता है। जैसे सूरज रात को नहीं दिखता वैसे चांद भी दिन में न आता तो ठीक रहता पर चांद ने मोह कर लिया, अतिपरिचय कर लिया। अतिपरिचय होने से मानहानि होती है। लोग ध्यान ही नहीं देते, समझते हैं-आकाश में कोई
बादल का टुकड़ा खड़ा होगा। ___मेरी दीक्षा के नौ मास बाद मुनि बुद्धमल्लजी की दीक्षा हुई। पूज्य कालूगणी राजगढ़ पधारे। राजगढ़-सादुलपुर में हम बाहर जंगल में जाते
तो रास्ते में वही स्कूल आती, जिसमें मुनि बुद्धमल्लजी पढ़े थे। स्कूल के छात्र, जो उनके साथ पढ़ने वाले थे, जोर-जोर से बोलते—'यह बुधिया जा रहा है, बुधिया जा रहा है।' मुनिजी को बड़ा अटपटा लगता। परिचित क्षेत्र में बड़ी कठिनाई होती है। अपरिचित रहें तब तक ठीक है।
जब परिचय हो गया कि चोर है तब बड़ा कठिन लगा। जब परिचय हो गया कि यह कठिहारा है तो लोगों के मन में भावना दूसरी बन गई। अभयकुमार ने कहा-'महाराज! आप विहार न करें। मैं इसका उपाय कर दूंगा।' ___ एक दिन अभयकुमार ने सामंत, मंत्री सबको बुला लिया। वह सबसे घिरा हुआ बाजार में जा रहा था। एक निश्चित योजना थी। उधर से वह लकड़हारा मुनि आया। लोगों का ध्यान उसकी ओर चला गया-वह कठिहारा आ रहा है। अभयकुमार तत्काल अपने रथ से नीचे उतरा। अभयकुमार उतरे तो कौन रथ पर बैठा रह सकता है? जितने मंत्री, सामंत थे, सब नीचे उतर गये। अभयकुमार सीधा लकड़हारा मुनि के पास गया। जाकर प्रदक्षिणा पूर्वक तीन बार उठ-बैठकर वंदना की। सारे सामंत, मंत्री देखते रह गये महामंत्री अभयकुमार क्या कर रहा है? हंसी के फव्वारे भी छूट गये। सामने तो कोई नहीं आया पर पीछे से हास्य और मखौल शुरू हो गया। अभयकुमार ने देख लिया। वह बड़ा चतुर था।
राज्यसभा का समय। सम्राट श्रेणिक और महामंत्री अभयकुमार अपने आसन पर बैठे। अभयकुमार ने राजसभा के सदस्यों की ओर उन्मुख होते हुए यह प्रसंग उपस्थित
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