Book Title: Gatha Param Vijay Ki
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 376
________________ अकेले जम्बूकुमार ने ऐसे प्रभावक और सम्मोहक वातावरण का निर्माण किया कि उसके साथ ५२७ व्यक्ति तैयार हो गए। जम्बूकुमार ने पूछा-कब दीक्षा लेनी है आपको?' 'शुभस्य शीघ्रम्-आप जब कहें, हम तभी तैयार हैं। शुभ कार्य में देरी क्यों?' 'अभी आप घर से आए हैं। घर को संभालना है, व्यवस्था करना है।' 'नहीं, व्यवस्था सब हो जायेगी। 'क्या दीक्षा अभी लेनी है?' 'हां, आपके साथ ही लेनी है।' माता-पिता ने बात कल पर नहीं छोड़ी। व्यक्ति कल पर छोड़े तो बात लंबी हो जाती है। कंजूस आदमी को किसी को देना होता है तो वह कल पर छोड़ देता है। एक बारहठजी ने विरुदावली गायी। सेठ राजी हो गया, बोला-'पगड़ी दूंगा।' बारहठ बड़ा खुश हुआ। वह दूसरे ही दिन सेठ के घर पहुंच गया, बोला-'सेठ साहब! आपने पगड़ी देने के लिए कहा था, पगड़ी दो।' 'अरे, कब कहा था?' 'आपने कल ही तो कहा था।' 'अरे भोला कहीं का! तुम आज ही आ गए। तुम समझते नहीं हो हम बांध पूत बांध पोते परपोते बांध, वही पाग फिर हम तुमको दिलाएंगे। अरे भाई! पगड़ी मैं बांधूंगा, फिर मेरा बेटा बांधेगा, फिर मेरा पोता बांधेगा, फिर मेरा परपोता बांधेगा। उसके बाद वही पाग मैं तुमको दूंगा।' जम्बूकुमार ने दीक्षा के लिए कल की प्रतीक्षा नहीं की। आज और इसी क्षण को चुना। ५२८ व्यक्तियों की एक सेना तैयार हो गई। वह प्रस्थान कर रही है सुधर्मा की सभा में जाने के लिए। इस प्रस्थान ने राजगृह नगर में एक आश्चर्य और कुतूहल के वातावरण का निर्माण कर दिया। गाथा परम विजय की ७८

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