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चिन्ता की बात नहीं है। इतना अपार धन है, सब कुछ है, कोई कमी नहीं है। आप निश्चिंत होकर जीवनयापन करें, यथाशक्य धर्मध्यान भी करते रहें। मैं मुनि बनकर भी आपके आध्यात्मिक विकास का चिन्तन । करूंगा। आपकी सद्गति हो, इसके लिए जागरूक रहूंगा।'
जम्बकुमार की उदात्त विचारधारा को सुनकर माता-पिता का मन भी बदलने लगा। वे निर्णय की स्थिति पर पहुंच गए। दोनों एक साथ बोले-'जम्बूकुमार! तुम जा रहे हो, बहुएं जा रही हैं, ये सब जा रहे हैं तो हम फिर क्या करेंगे?'
साहाहिं रूक्खो लहए समाहि छिन्नाहि साहाहिं जहेव खाणु। जब शाखा प्रशाखा होती है तब वृक्ष सुंदर लगता है। जब सारी शाखाएं काट देते हैं, तब वृक्ष कोरा ठ्ठ बन जाता है। रात को देखें तो किसी को भूत-सा लगता है। हम लूंठ बनकर घर में रहना नहीं चाहते, हम भूत बनकर घर में रहना नहीं चाहते। हमारी सारी शाखाएं जा रही हैं तो हमारा भी निर्णय यही है कि हम भी साधु बनेंगे।
५०० चोर, जम्बूकुमार और प्रभव, माता-पिता और आठ कन्याएं-पांच सौ बारह व्यक्ति तैयार हो गये। जम्बूकुमार ने कहा-'हम सब सुधर्मा की सभा में चलें और दीक्षा के लिए प्रार्थना करें।' ____ कन्याओं ने अनुरोध किया-'स्वामी! पहले हमारे माता-पिता को बुलाएं, उन्हें सूचना दें कि हम सब दीक्षित हो रहे हैं।' ___स्वामी! आपने अपने माता-पिता की स्वीकृति प्राप्त कर ली है और उन्हें तैयार भी कर लिया है। हम गाथा भी अपने माता-पिता से स्वीकृति लेना आवश्यक मानती हैं। हमारा प्रयत्न भी यही होगा कि हमारे माता- परम विजय की पिता भी इस महान् पथ के पथिक बनें।'
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