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रही है या नहीं? डॉक्टर सांस और हृदय की धड़कन को देखता है । सांस है तो जीवित माना जाता है। सांस बंद तो जीवन समाप्त। पर कवि कहता है- सांस तो लेता है पर जिन्दा नहीं है।
कवि ने बड़ी युक्ति के साथ समर्थन किया है और उदाहरण के द्वारा उसको प्रमाणित किया है। उसने कहा-आपने लोहार की धौंकनी देखी होगी। लोहार जब धौंकता है, वह सांस इतना जोर से लेती है कि दूर तक आवाज सुनाई देती है। उसके आधार पर एक प्राणायाम का नाम ही भ्रस्त्रिका हो गया। लोहार की धौंकनी का संस्कृत में नाम है भ्रस्त्रा । एक प्राणायाम जो जोर-जोर से लिया जाता है उसका नाम है भ्रस्त्रिका। वह धौंकनी सांस तो लेती है पर जिन्दा नहीं है। वैसे ही जो आदमी धर्मशून्य होता है, धर्म बिना जिसका जीवन चलता है वह सांस तो लेता है पर जिन्दा नहीं है।
जम्बूकुमार बोला- 'मां ! अब अंतराय मत दो। मुझे जल्दी स्वीकृति दो, आज्ञा दो क्योंकि जिनशासन में आज्ञा के बिना संयम प्राप्त नहीं होता । कोई-कोई प्रत्येक बुद्ध होता है जो अपनी इच्छा से चल पड़ता है किन्तु एक गच्छ में, संघ सामाचारी में कोई दीक्षित होता है तो वह माता-पिता और परिवार की स्वीकृति - पूर्वक दीक्षित होता है। आप सब खड़े हैं। मुझे स्वीकृति दें।'
मां और पिता ने सारी बात सुनी। मन में तूफान उत्पन्न हो गया। मां की स्थिति बहुत विचित्र बन गई। भीतर में भयंकर उद्वेलन है फिर भी अपने आप को बाहर से शांत कर मां बोली- 'बेटा! तुम दीक्षा की बात कर रहे हो। तुम्हारी भावना ठीक है। मैं रोकना भी नहीं चाहती पर मेरे प्रश्न का पहले उत्तर दो।'
'मां! क्या प्रश्न है आपका ?'
'जंबू! तुम दयालु माता-पिता को छोड़ रहे हो । हितैषी भाई- भगिनी को छोड़ रहे। सहयोगी मित्रों और सहायकों को छोड़ रहे हो। सदा छाया की तरह साथ रहने वाली प्रियाओं को त्याग रहे हो। इस भव्य प्रासाद को छोड़ रहे हो। ये सब तुम्हें वहां कहां मिलेंगे ?'
संयोग
'मां! तुम जिनके लिए यह कह रही हो, वे सब अशाश्वत हैं। आज हैं, कल नहीं हैं। आज जिनका हुआ है, उनका किसी क्षण वियोग हो सकता है। मां ! अध्यात्म मार्ग में मुझे ऐसे माता-पिता, भ्राता और सुहृद मिले हैं, जिनका कभी वियोग नहीं होता । '
'जंबू! अध्यात्म में तो व्यक्ति अकेला होता है। वहां कहां हैं माता-पिता और कहां हैं मित्र-सुहृद ?' ‘मां! क्या तुम जानना चाहोगी?'
'हां, जंबू! मैं जानना चाहती हूं कि कौन हैं वे, जिनका कभी वियोग नहीं होता । '
'मां! वे मेरे चिर-सहचर बने रहेंगे।'
‘जंबू! मैं उनके नाम जानना चाहती हूं।'
'मां तुम ध्यान से सुनो
पिता योगाभ्यासो विषयविरतिः सा च जननी, विवेक सौदर्यः प्रतिदिनमनीहा च भगिनी । प्रिया शांतिः पुत्रो विनय उपकारः प्रिय सुहृत्, सहायो वैराग्यं गृहमुपशमो यस्य स सुखी ।।
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गाथा
परम विजय की
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