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प्राचीन जमाने में एक-एक घर में इतने रत्न होते थे कि आज तो कल्पना भी नहीं कर सकते। जिन्होंने जगतसेठ का नाम सुना है, जगड़शाह का नाम सुना है, जिन्होंने भैंसाशाह का नाम सुना है, जिन्होंने भामाशाह का नाम सुना है जो जैन श्रावक थे, वे इतने धनी और सम्पन्न थे। जगड़शाह ने जब अपना रत्न भण्डार दिखाया तो बादशाह के अधिकारी चकित हो गये। जगड़शाह बोला-'चिंता मत करो। गुजरात में अकाल है तो पूरे गुजरात को मैं अनाज दूंगा।'
कन्याएं बोलीं-मां! आपके घर में रत्न बहुत हैं किन्तु अब वे हमारे लिए व्यर्थ बन गये हैं।' 'मां! मोहग्रस्त आदमी इन पत्थर के टुकड़ों को रत्न मानते हैं।'
'मां! हमारा मोह भंग हो गया है। हमें इन रत्नों में कोई सार दिखाई नहीं देता। एक रात में प्रियतम ने हमें अनुत्तर तीन रत्नों का ज्ञान करा दिया है। वह रत्नत्रयी है सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र।'
रत्न रखने वाले, रत्नों का धंधा करने वाले, रत्न का काम करने वाले, उन्हें जड़ाने और पहनने वाले यह भी जानें कि रत्न सिर्फ वे ही नहीं हैं। तीन रत्न सर्वश्रेष्ठ हैं और वे हैं-सम्यक् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र।
सम्यक् दर्शन से बड़ा दुनिया का कोई रत्न नहीं है। जिसका दृष्टिकोण सही हो गया, उसे महान् रत्न उपलब्ध हो गया।
सीकर से एक भाई आया। वह जैन नहीं था। पहली बार दर्शन किए। उसने कहा-'मैं राजस्थान पत्रिका का तत्त्वबोध पढ़ता हूं। आपके विचारों से मुझे नया चिन्तन मिला है। कुछ समस्या है उसे सुलझाने आया हूं।'
मैंने कहा-'बोलो, क्या समस्या है?'
'महाराज! समस्या यह है कि मुझे निरंतर बुरे विचार आते हैं। निरंतर नकारात्मक दृष्टिकोण, निषेधात्मक दृष्टिकोण, नेगेटिव ऐटिट्यूड बना रहता है। बड़ा दुःखी हूं। इससे कैसे मुक्ति पा सकता हूं?'
बहुत लोग हैं जिनमें निराशा, हताशा और उदासी रहती है, बुरे विचार, बुरे सपने आते रहते हैं। उसने कहा-'महाराज! दिन में बुरे विचार आते हैं और रात को बुरे सपने आते हैं।' यही समस्या कल एक युवती ने रखी-'मुझे बुरे सपने बहुत आते हैं। मैं क्या करूं?'
यह जटिल समस्या है। अगर यह नकारात्मक दृष्टिकोण बदल जाये, यह मिथ्या दृष्टिकोण बदल जाये, दर्शन सम्यक् हो जाये तो उससे बड़ा दुनिया में कोई धनी नहीं होता। बड़े-बड़े धनी लोग उनके चरणों में सिर टिकाते हैं, जिनका दृष्टिकोण सम्यक् बन गया है। ___ एक राजा ने सुना शहर में संन्यासी आया है। गलियों में, खेत-खलियानों में घूमता रहता है। जहां अनाज के दाने बिखरे रहते हैं, उनको चुग-चुग कर खाता है। राजा को बड़ी दया आई। राजा ने अपने अधिकारियों से कहा-'तुम जाओ और उस संन्यासी को कुछ धन दे आओ, जिससे वह ठीक खा सके।' ___ अधिकारी गये, बोले-'महाराज! राजा ने हमें भेजा है। यह धन तैयार है। आप इसे स्वीकार करें और अच्छी तरह खाना तो खा लें।'
गाथा परम विजय की
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