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'महाराज! आप जैसे फक्कड़ बाबा होते हैं, वे बड़े अक्खड़ होते हैं। कुछ जानते ही नहीं हैं। सोने में गंध होती है। यह आज तक नहीं सुना।'
'राजन्! अब जानना है?'
गाथा परम विजय की
'तो चलो मेरे साथ।
संन्यासी ने राजा को साथ में ले लिया। जंगल से शहर की ओर आए। संन्यासी ने लोगों से पूछा'मोचीवाड़ा कहां है।'
लोगों ने बताया-उधर है।' 'राजन्! चलो, उधर चलें।' 'महाराज! वहां कहां जायेंगे? आप मेरे महल की ओर चलिए।' 'राजन्! पहले मोचीवाड़ा में जाएंगे।'
राजा क्या करे। वह विवश था। संन्यासी जा रहा है, राजा का हाथ पकड़ा हुआ है। संन्यासी एक मोची के घर के सामने रुका, बोला-राजन्! चलो, इस घर में चलें।'
राजा ने रूमाल निकाला और एकदम नाक को बंद कर लिया, बोला-'महाराज! कितनी बदबू आ रही है। आप कहां ले जा रहे हैं? क्या आपको बदबू नहीं आती?'
'नहीं, मुझे तो कुछ पता नहीं है।' 'आप भी बड़े विचित्र हैं। आपको सोने की तो बदबू आती है और चमड़े की बदबू नहीं आती।' संन्यासी ने मोची को बुलाया, बुलाकर पूछा-'तुम्हारे पास रूमाल नहीं है।' 'रूमाल तो है।' 'अरे देखो, राजा ने रूमाल से नाक को बंद कर रखा है। तुमने क्यों नहीं किया?' 'क्यों बंद करूं महाराज!' 'देखो कितनी बदबू आ रही है!' मोची ने कहा-'कहां है बदबू? कोई बदबू नहीं है। मेरा घर तो साफ-सुथरा है।'
संन्यासी बोला-'राजन्! यह क्या कह रहा है? क्या यह झूठ बोल रहा है? तुम कह रहे हो कि इतनी बदबू आ रही है। नाक-मुंह सिकोड़ रखा है और रूमाल दे रखा है। यह कहता है बदबू नहीं है।'
'महाराज! इसको बदबू कैसे आयेगी? यह तो दिन-रात इसके बीच में रहता है। इसका नाक तो पक्का हो गया है?'
'राजन्! अब तो तुम समझ गए। 'महाराज! मैं तो कुछ नहीं समझा।'
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