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----'साथियो! अब प्रभव बदल गया है। अब प्रभव चोरी नहीं करेगा। अब प्रभव जनता को व्यथित नहीं करेगा।'
जब चेतना का रूपान्तरण होता है, आत्मतुला की अनुभूति हो जाती है, आत्मा की समानता की अनुभूति हो जाती है, दूसरे की पीड़ा को अपने समान देखने लग जाता है तब वह अन्याय कर नहीं सकता, किसी को सता नहीं सकता, किसी को दुःखी नहीं बना सकता। प्रभव भी इसी प्रवाह में बोल रहा था 'अब प्रभव चोरी नहीं करेगा। अब प्रभव चोरों का स्वामी नहीं रहेगा। अब प्रभव चोरों को संरक्षण नहीं देगा।' ____ 'साथियो! मैं मानता था कि मैं कितना सुखी हूं! मेरे पास चोरों की एक बड़ी सेना है। मेरे पास बिना कमाये मुफ्त का धन आता है। दूसरे लोग तो श्रम करते हैं, पसीना बहाते हैं तब धन आता है और हमें कुछ
भी नहीं करना पड़ता। सीधा धन मिलता है। कोई कमी नहीं रहती। समझता था कि इस दुनिया में मेरे समान ___ कोई सुखी नहीं है। अब भ्रांति टूट गई है, भ्रम मिट गया है, आंखें खुल गई हैं।
जम्बूकुमार तणा सुख देखता, म्हारा सुख अल्पमात।
ओ ईसड़ा सुख छोड़े निकलै, आ अचरज वाली बात।। साथियो! यह कितना बड़ा आश्चर्य है!'
महाभारत के समय युधिष्ठिर से यक्ष ने प्रश्न पूछा, जो यक्ष-प्रश्न के नाम से प्रसिद्ध है। उसका प्रश्न था-किमाश्चर्यमतःपरं-बताओ, इससे बड़ा आश्चर्य क्या है। युधिष्ठिर ने कहा
अहन्यहनि भूतानि, गच्छंति यममंदिरे।
शेषाः जीवितुमिच्छंति किमाश्चर्यमतःपरं।। प्रतिदिन प्राणी मरते हैं और यम मंदिर में चले जाते हैं। जो शेष बचे हैं वे सोचते हैं मरने वाले दूसरे हैं, हम तो कभी नहीं मरेंगे। वे रोज देखते हैं कि अर्थियां निकल रही हैं, लोग श्मशान में ले जा रहे हैं, चिताएं ___ -धूं कर जल रही हैं। आंखों से रोज यह सब देखते हैं फिर भी सोचते हैं हम तो स्थिर रहेंगे, अमर बने रहेंगे। किमाश्चर्यमतःपरं-इससे बड़ा आश्चर्य क्या होगा? __प्रभव बोला-'साथियो! इससे बड़ा आश्चर्य क्या होगा? जम्बूकुमार को इतना सुख प्राप्त था जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते। जम्बूकुमार के पास जितना धन है, इतना धन कहीं देखा है?'
'नहीं, स्वामी।'
'साथियो! इसका भव्य प्रासाद देखो, इसका वैभव देखो, इसका रूप यौवन देखो, इसका मानसम्मान देखो। इसकी नवपरिणीता आठ पत्नियां भीतर हैं। उन अप्सरा तुल्य पत्नियों को देखो। जम्बूकुमार इन सबको छोड़ रहा है। किमाश्चर्यमतःपरं-इससे बड़ा और क्या आश्चर्य होगा?'
'साथियो! मैं यह सब देखकर दंग रह गया। मेरा सिर झुक गया इस नवयुवक के सामने।'
'बंधुओ! मैंने यह निर्णय कर लिया है कि मैं भी जम्बूकुमार के पदचिह्नों पर चलूंगा। यह मुनि बनेगा तो मैं भी मुनि बनूंगा। अब बोलो तुम्हारी क्या इच्छा है?'
इस हितकर उपदेश ने चोरों के हृदय का स्पर्श किया। उनकी चिन्तनधारा में बदलाव आया। उन्होंने ३५२
गाथा परम विजय की