Book Title: Gatha Param Vijay Ki
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

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Page 356
________________ गाथा परम विजय की इतिहास में कुछ घटनाएं विरल होती हैं। कभी-कभी कोई प्रसंग बनता है तब विचित्र घटनाएं सामने आती हैं। अतीत में हजारों मुनि बने हैं, भविष्य में बनेंगे किन्तु जम्बूकुमार का मुनि बनना एक विरल घटना हैं। भगवान ऋषभ ने दीक्षा ली तब ४००० लोगों ने उनके साथ अभिनिष्क्रमण किया। यह आश्चर्य की बात है कि प्रथम बार दीक्षा हो रही थी और ४००० शिष्य बिना निमंत्रण के साथ हो गये पर चोर उनमें एक भी नहीं था। अनेक तीर्थंकर दीक्षित हुए, उनके साथ भी अनेक व्यक्ति साधु बने। भगवान महावीर के साथ कोई दीक्षित नहीं हुआ। वे अकेले ही संन्यास के पथ पर चल पड़े। ऐसे व्यक्ति भी हुए हैं, जिनके साथ सैकड़ों लोग दीक्षित हुए किन्तु कभी किसी के साथ कोई चोर दीक्षित हुआ हो, यह इतिहास में उल्लेख नहीं मिलता। पूरे इतिहास काल में अकेला जम्बूकुमार ही ऐसा है जो स्वयं दीक्षित हो रहा है और उसके साथ चोरों का परिवार दीक्षित होने के लिए संकल्पित हो रहा है। यह एक विरल आश्चर्यकारी घटना है। ____ वह रात उद्बोध, संबोध और प्रतिबोध की रात थी। एक ओर सारी दुनिया सोई हुई थी दूसरी ओर जम्बूकुमार के भव्य प्रासाद में चैतन्य जागरण का महान् अभियान चल रहा था। जम्बूकुमार का वह अभियान सफल हो गया। अब प्रतीक्षा हो रही है सूर्योदय की। कब सूरज उगे और कब हम माता-पिता के पास जाएं। सूर्य भी शायद इस प्रतीक्षा में रहा होगा कि कब जम्बूकुमार का अभियान संपन्न हो और कब मैं अभिनिष्क्रमण का वर्धापन करूं जैसे ही पूर्वांचल में सूर्य आया, सूर्य की रश्मियां पृथ्वी पर बिखरीं, धरती पर अरुणाभ प्रकाश फैला। जम्बूकुमार ने प्रभव से कहा-'प्रभव! चलो। हम मुख्य प्रासाद में चलें। माता-पिता से मिलना है, मातापेता को प्रणाम करना है।' वे सोपान वीथी से नीचे उतरे। माता-पिता भी सूर्योदय से पूर्व जागृत हो गये। वे प्रातःकर्म से निवृत्त होकर पुत्र-पुत्रवधुओं की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनके दिमाग में यह विचार स्फुरित हो रहा था कि देखो, अब १५८

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