Book Title: Gatha Param Vijay Ki
Author(s): Mahapragya Acharya
Publisher: Jain Vishvabharati Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 354
________________ 'जहां खरोंच है, वहां बिल्कुल लगी हुई नहीं है। कहां लगाई?'..... पत्नी ने कांच की ओर देखा तो मलहम कांच पर लगी हुई थी। नशे में पता ही नहीं चलता। चेतना को स्वस्थ रखने के लिए ज्ञान का होना बहुत जरूरी है। भगवान महावीर का वचन है-पढमं णाणं तओ दया-पहले ज्ञान और फिर आचरण। जब ज्ञान ही नहीं है तो आचरण कैसे होगा? बिना जाने ठीक आचरण नहीं होता। पहले जानना जरूरी है। प्राचीन घटना है। एक मुमुक्षु भाई की दीक्षा होने वाली थी। वे मेवाड़ में संतों के दर्शनार्थ गए। वे जिस क्षेत्र के थे, वहां आम नहीं होते थे इसलिए उन्होंने कभी आम नहीं देखा था। मेवाड़ में यह पद्धति प्रचलित है-भोजन के साथ थाली में आम भी रख देते हैं। इसलिए कि रोटी खाओ और आम को चूसते चले जाओ। मुमुक्षु ने सोचा-यह क्या चीज है? कैसे खाऊं? मुमुक्षु भाई आम को हाथ में लेता है इधर-उधर करता है पर उसे खाता नहीं है। पास में भोजन कर रहे भाई ने अपने थाल में रखे हुए आम को हाथ में लेकर दिखाते हुए कहा-वैरागीजी! यह आम है। इसका ऊपर से नाका तोड़ो और इसको ऐसे चूसो। यह बहुत स्वादिष्ट फल है।' ___मुनि घासीरामजी स्वामी धर्मसंघ के तत्त्वज्ञानी संत थे। सिद्धांतों के गहरे जानकार थे। वे मेवाड़ क्षेत्र के थे। दीक्षा से पूर्व वे वैरागी अवस्था में सुजानगढ़ आए। सुश्रावक लोढ़ाजी ने भोजन के लिए निमंत्रण दिया। भोजन की कटोरी में खीर परोसी। खीर पर बादाम, पिस्ता की कतरन थी। वैरागी शेष सब खाद्य वस्तु खाते रहे पर खीर को नहीं छुआ। पास बैठे व्यक्ति ने पूछा-वैरागीजी! यह खीर क्यों नहीं खाते?' 'भाई! क्या खाएं? इसके ऊपर तो लट ही लट पड़ी है।' पदार्थ का ज्ञान नहीं होता तो पिस्ता, बादाम की कतरन ‘लट' बन जाती है। यह व्यवहार की बात है। तत्त्व की बात यह है जो जीव को नहीं जानता, अजीव को नहीं जानता वह संयम को कैसे जानेगा? इसलिए तत्त्वज्ञान का होना बहुत जरूरी है। जब ज्ञान होता है तब सचमुच नेत्र वुल जाता है। जो जीवे वि न याणाई, अजीवे वि न याणई। जीवाजीवे अयाणतो, कहं सो णाहिई संजम।। प्रभव का नेत्र खुला, सारे वातावरण में एक अकल्पित बदलाव आया, ५०० चोरों के नेत्र भी खुल ए। उन्होंने सोचा-आज तक सब चौर्य-कर्म के सहायक मिले। यह कहने वाला कोई नहीं मिला-चोरी करना रा है। सबने यही कहा यह बड़ा अच्छा काम है, सीधा धन आता है। धन लूट कर लाओ, फिर खूब मजा रो, आनंद लो, कोई चिंता नहीं। आज तो सचमुच एक नया प्रभात हो रहा है। यह प्रत्यूष काल है। सूरज की रणें आने वाली हैं। इस समय एक नव अरुणाभा का प्रसार हो रहा है। सबका मन बदल रहा है। ___बड़ा कठिन काम है मन को बदल देना। समर्थ आदमी जबर्दस्ती अपनी बात मनवाता है, डंडे के बल मनवा लेता है पर मन को बदल देना बहुत बड़ी बात है। हृदय-परिवर्तन हो जाना, हृदय का बदल जाना ठा दुष्कर काम है। गाथा परम विजय की

Loading...

Page Navigation
1 ... 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398