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'राजन्! यह व्रतों का प्रभाव है। इससे तेरी भावना सिद्ध हो गई। मैं लेना-देना कुछ नहीं करता।' व्यक्ति में सुतैषणा इतनी प्रबल होती है कि वह उसकी पूर्ति के लिए किसी के भी पास चला जाता है। doinos तीसरी एषणा होती है यश की। हर आदमी सुयश चाहता है
विश्रुत प्रसंग है। राजा दिलीप के सामने सिंह खड़ा है। सिंह ने कहा-मैं तुम्हें मारूंगा। उसने कहा-मुझे कोई चिंता नहीं है। सिंह बोला यदि तुम बचना चाहते हो तो नंदिनी गाय का पीछा छोड़ दो। यदि गाय के साथ-साथ चलते हो तो मैं तुम्हें मार डालूंगा। राजा दिलीप ने कहा-'यशःशरीरे भव मे दयालु'–बस तुम मेरे यशःशरीर पर दयालु रहो। तुम मुझे मार दो, कोई चिन्ता नहीं है पर मेरा यश का शरीर बना रहेगा।'
धन, पुत्र और यश-ये तीन एषणाएं हैं, तीन मौलिक मनोवृत्तियां हैं। प्रभव ने कहा-'कुमार! पुत्र को पैदा किये बिना साधु बनना तुम्हारे लिए बिल्कुल उचित नहीं है।'
जम्बूकुमार बोला-प्रभव! मैं तुम्हारी बात को जानता हूं। मैं सुतैषणा को भी जानता हूं। पुत्र के बिना क्या गति होती है, उसको भी जानता हूं किन्तु तुम मेरी बात सुनो।' __'प्रभव! तुम कह रहे हो पारिवारिक जीवन को ध्यान में रखकर, द्वैत के जगत् को ध्यान में रखकर। एक जगत् है द्वैत का जगत् और एक जगत् है अकेले का जगत्। दोनों का अपना-अपना दृष्टिकोण, अपनाअपना सिद्धांत और अपना-अपना विचार। मैं तुम्हारी बात का खण्डन करना नहीं चाहता, क्योंकि तुम जिस भूमिका पर खड़े होकर बात कर रहे हो, उसमें यह बिल्कुल सही बात है। द्वैत के जगत् में, दो के जगत् में
गाथा अगर पुत्र नहीं है तो समस्या पैदा होती है। किन्तु मैं बात कर रहा हूं एक के जगत् की।'
परम विजय की 'प्रभव! शरीर के साथ जुड़ा हुआ है तुम्हारा सिद्धांत और आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है मेरा सिद्धांत।' 'प्रभव! आदमी जन्मता है तो अकेला आता है या बेटे को साथ लेकर आता है?' 'अकेला आता है।' 'मरता है तब अकेला जाता है या बेटे के साथ जाता है?' 'अकेला जाता है।' 'कोई भी कर्म करता है तो अकेला करता है या बेटे के साथ करता है?' 'अकेला करता है।' 'क्या सुख-दुःख का संवेदन भी बेटे के साथ करता है।' 'नहीं, अकेला करता है।' 'प्रभव! यह संबंध एक लौकिक संबंध है, सामाजिक संबंध है।'
जम्बूकुमार के सामने आज के युग का चित्र नहीं था, पुराने समाज का चित्र था। आज का होता तो अमेरिका आदि राष्ट्रों की घटना बता देता कि बस बेटा थोड़ा बड़ा हुआ, आत्मनिर्भर बना और माता-पिता से अलग रहने लगा। फिर स्थिति यह होती है कि मिलने का भी सांसा है, मिलने का भी मौका नहीं मिलता। ३३४