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'ओह! मां।' 'बेटा! जल्दी कर।' 'बस सिर काट ले जिससे कोई पहचान न सके।' 'मां! बात तो तुम ठीक कह रही हो।' वह तलवार लेकर गया। सामने फंसे खाती ने देख लिया, बोला-'अरे! क्या कर रहा है?' 'पिताजी! आपका सिर काटूंगा।' 'अरे! मेरा सिर काटेगा?' 'यदि नहीं काटूंगा तो हम सब मारे जायेंगे।' खाती बहुत गिड़गिड़ाया, बोला-'सिर मत काट। सेठ बहुत दयालु है। छोड़ देगा।' वह बोला-'मां ने कहा है कि पिता की कोई बात मत सुना।' बात करते-करते तलवार ऐसी चलाई कि धड़ अलग और सिर अलग। वह सिर लेकर घर आ गया।
जम्बूकुमार बोला-'प्रभव! तुम यह जानते हो कि जहां दो हैं, स्वार्थ है वहां क्या होता है? तुम्हारी दुनिया दूसरी है और मेरी दुनिया दूसरी है। मैं दूसरी दुनिया की बात कर रहा हूं।'
जम्बूकुमार प्रभव को अध्यात्म की गहराई में ले गया, एकत्व अनुप्रेक्षा का मर्म समझाया-'प्रभव! अकेलेपन को मत भूलो। दो में रहते हुए भी अकेले रहो।'
प्रभव का मन भी प्रबुद्ध हो गया, उसने कहा-'कुमार! तुम ठीक बात कहते हो। यह झूठा मोह है। व्यवहार में चलता है कि संतान पैदा करो पर जो इस भूमिका में चला जाए, उसके लिए यह कोई नियम हीं है। यह बात समझ में आ गई।'
'प्रभव! अब बोलो, क्या परामर्श है।' _ 'कुमार! आपके निर्णय का औचित्य और आधार मेरी समझ में आ गया है। मेरे प्रायः प्रश्न भी समाहित हो गए हैं। अब केवल एक प्रश्न शेष रहा है। उसका समाधान होने पर मैं भी अपना संकल्प प्रस्तुत रूंगा।'
गाथा परम विजय की