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सारा संसार आकर्षण के आधार पर चल रहा है। आकर्षण के नाना रूप और नाना नाम बने हुए हैं। एक बच्चे का आकर्षण खेल-कूद में होता है, टॉफी खाने में होता है, बर्फ खाने में होता है। आजकल टी.वी. और क्रिकेट में होता है। एक युवक बन गया, उसके आकर्षण का केन्द्र बदल जायेगा। वृद्ध हो गया, उसका आकर्षण बिन्दु दूसरा हो जायेगा । जो भौतिकता में लिप्त है उसका आकर्षण पदार्थ के प्रति रहता है और वह पदार्थ को ही सब कुछ मानता है। जिसे सत्य उपलब्ध हो गया, उसका आकर्षण आत्मा हो जाता है, अपने प्रति हो जाता है और वह अपने को देखने का प्रयत्न करता है। भिन्न-भिन्न रूप और भिन्न-भिन्न नाम बन गये। पदार्थ के प्रति आकर्षण होता है, उसका नाम हो गया 'मोह' अथवा 'राग' | धर्म के प्रति आकर्षण होता है अथवा आत्मा के प्रति आकर्षण होता है, उसका नाम हो गया -श्रद्धा, धर्मानुराग ।
जम्बूकुमार का आकर्षण आत्मा के प्रति है । राजकुमार प्रभव - जो वर्तमान में चोर पल्ली का स्वामी है-का आकर्षण है धन के प्रति । वह इसीलिए जम्बूकुमार के घर में आया हुआ है।
प्रभव बोला-'कुमार! जिसके लिए तप तपा जाता है, वह सारा तुझे प्राप्त है और तुम उसे छोड़ रहे हो! मेरी दृष्टि में यह समझदारी नहीं है। अगर तुम थोड़े भी समझदार होते तो इतनी विशाल सम्पदा को छोड़कर मुनि बनने का मार्ग कभी नहीं चुनते । '
यह समस्या है आकर्षण भेद की। एक का आकर्षण है भोग में, एक का आकर्षण है अभोग में । इसीलिए प्रभव की बात जम्बूकुमार और जम्बूकुमार की बात प्रभव के समझ में नहीं आई। शराब पीने वाला शराब की महिमा गाता है - जब शराब पीता हूं तो मस्ती में चला जाता हूं। शराब नहीं पीने वाले को यह बात समझ में नहीं आती। शराब न पीने वाले की जो मस्ती है, वह शराब पीने वाले की समझ में नहीं आती। यह दूरी बनी रहती है, खाई पटती नहीं है ।
एक व्यक्ति ने उपवास किया और एक व्यक्ति ने भोज में स्वादिष्ट भोजन किया। जो स्वादिष्ट भोजन करके आया, वह भोजन की प्रशंसा करने लगा - देखो, इतना स्वादिष्ट भोजन था। ऐसा था, वैसा था। यह
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गाथा
परम विजय की
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